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________________ १२८ स्थानाङ्गसूत्रम् होता है तथा कोई पुरुष 'बैठ कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०७) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'बैठता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष बैठता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष बैठता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'बैलूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'बैलूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'बैलूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०९)।] २१०- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अणिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अणिसिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अणिसिइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २११– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण णिसीदामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसीदामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २१२- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसीदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं बैठ कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं बैठ कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं बैठ कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२१०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'नहीं बैठता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं बैठता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'नहीं बैठता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२११) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं बैलूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं बैलूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं बैलूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२१२)।] २१३– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—हंता णामेगे सुमणे भवति, हंता णामेगे दुम्मणे भवति, हंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मगे भवति। २१४- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाहणामीतेगे सुमणे भवति, हणामीतेगे दुम्मणे भवति, हणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २१५– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, हणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, हणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मार कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष मार कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मार कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२१३)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष मारता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मारता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष मारता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२१४)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मारूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मारूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष मारूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२१५)।] ___ २१६– [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अहंता णामेगे सुमणे भवति, अहंता णामेगे दुम्मणे भवति, अहंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २१७ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण हणामीतेगे सुमणे भवति, ण हणामीतेगे दुम्मणे भवति, ण हणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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