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________________ १२६ स्थानाङसूत्रम् तं जहा—एमीतेगे सुमणे भवति, एमीतेगे दुम्मणे भवति, एमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मगे भवति। १९७– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—एस्सामीतेगे सुमणे भवति, एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, एस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे ] भवति। १९८- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अणागंता णामेगे सुमणे भवति, अणागंता णामेगे दुम्मणे भवति, अणागंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। एवं एएणं अभिलावेणं गंता य अगंता य, आगंता खलु तहा अणागंता । चिट्ठित्तमचिट्ठित्ता, णिसितित्ता चेव णो चेव ॥१॥ हंता य अहंता य, छिंदित्ता खल तहा अछिंदित्ता । बूतित्ता अबूतित्ता, भासित्ता चेव णो चेव ॥ २॥ दच्चा य अदच्चा य, भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता । लंभित्ता अलंभित्ता, पिबइत्ता चेव णो चेव ॥ ३॥ सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झित्ता ।। जतित्ता अजतित्ता, पराजिणित्ता चेव णो चेव ॥४॥ सद्दा रूवा गंधा, रसा य फासा तहेव ठाणा य । . णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स ॥ ५॥ एवमिक्केक्के तिण्णि उ तिण्णि उ आलावगा भाणियव्वा। १९९- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण एमीतेगे सुमणे भवति, ण एमीतेगे दुम्मणे भवति, ण एमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २००- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाण एस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण एस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति। [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'आकर के' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'आकर के' दुर्मनस्क होता है तथा,कोई पुरुष 'आकर के' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है समभाव में रहता है (१९५) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'आता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'माता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'आता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९६)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष 'आऊंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'आऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'आऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९७)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं आकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं आकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं आकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं आता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं आता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं आता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९९)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं आऊंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं आऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं आऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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