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________________ तृतीय स्थान- द्वितीय उद्देश १२५ णिग्गंथे परियायथेरे। तीन स्थविरभूमियां कही गई हैं—जातिस्थविर, श्रुतस्थविर और पर्यायस्थविर। साठ वर्ष का श्रमण निर्ग्रन्थ जातिस्थविर (जन्म की अपेक्षा) है। स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग का ज्ञाता श्रमण निर्ग्रन्थ श्रुतस्थविर है और बीस वर्ष की दीक्षापर्यायवाला श्रमण निर्ग्रन्थ पर्यायस्थविर है (१८७)। सुमन-दुर्मनादिसूत्र : विभिन्न अपेक्षाओं से १८८- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुमणे, दुम्मणे, णोसुमणे-णोदुम्मणे। १८९तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहागंता णामेगे सुमणे भवति, गंता णामेगे दुम्मणे भवति, गंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। १९०- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जामीतेगे सुमणे भवति, जामीतेगे दुम्मणे भवति, जामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। १९१— एवं [ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—] जाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, [जाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जाइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति]। १९२- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अगंता णामेगे सुमणे भवति, [अगंता णामेगे दुम्मणे भवति, अगंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ]। १९३- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण जामि एगे सुमणे भवति, [ण जामि एगे दुम्मणे भवति, ण जामि एगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति]। १९४- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण जाइस्सामि एगे सुमणे भवति, एवं [ण जाइस्सामि एगे दुम्मणे भवति, ण जाइस्सामि एगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति]। पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—सुमनस्क (मानसिक हर्ष वाले), दुर्मनस्क (मानसिक विषाद वाले) और नो-सुमनस्क-नोदुर्मनस्क (न हर्ष वाले, न विषाद वाले, किन्तु मध्यस्थ) (१८८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष (कहीं बाहर) जाकर सुमनस्क होता है। कोई पुरुष जाकर दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष जाकर न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१८९)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मैं जाता हूं' इसलिए ऐसा विचार करके सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मैं जाता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मैं जाता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मैं जाऊंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मैं जाऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मैं जाऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९१)। [पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष 'न जाने' पर सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'न जाने पर', दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'न जाने पर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९२)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के होते हैं—कोई पुरुष नहीं जाता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं जाता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं जाता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९३)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के होते हैं—'नहीं जाऊंगा' इसलिए सुमनस्क होते हैं। कोई पुरुष नहीं जाऊंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं जाऊंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (१९४)।] १९५- एवं [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—] आगंता णामेगे सुमणे भवति, आगंता णामेगे दुम्मणे भवति, आगंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। १९६— तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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