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________________ १२० स्थानाङ्गसूत्रम् गई हैं—ईषा, त्रुटिता और दृढ़रथा (१५०)। जैसा धरण की परिषदों का वर्णन किया गया है, वैसा ही शेष भवनवासी देवों की परिषदों का भी जानना चाहिए (१५१)। १५२– कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा ईसा तुडिया दढरहा। १५३- एवं सामाणिय-अग्गमहिसीणं। १५४- एवं जाव गीयरतिगीयजसाणं। पिशाचों के राजा काल पिशाचेन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं—ईशा, त्रुटिता और दृढ़रथा (१५२)। इसी प्रकार उसके सामानिकों और अग्रमहिषियों की भी तीन-तीन परिषद् जानना चाहिए (१५३)। इसी प्रकार गन्धर्वेन्द्र गीतरति और गीतयश तक के सभी वाण-व्यन्तर देवेन्द्रों की तीन-तीन परिषद् कही गई हैं (१५४)। १५५— चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तुंबा तुडिया पव्वा। १५६– एवं सामाणिय-अग्गमहिसीणं। १५७– एवं सूरस्सवि। ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र ज्योतिष्केन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं—तुम्बा, त्रुटिता और पर्वा (१५५)। इसी प्रकार उसके सामानिकों और अग्रमहिषियों की भी तीन-तीन परिषद् कही गई हैं (१५६) । इसी प्रकार सूर्य इन्द्र की और उसके सामानिकों तथा अग्रमहिषियों की तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (१५७)। . १५८– सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा समिता, चंडा जाया। १५९– एवं—जहा चमरस्स जाव अग्गमहिसीणं। १६०– एवं जाव अच्चुतस्स लोगपालाणं। देवों के राजा शक्र देवेन्द्र की तीन परिषद् कही गई हैं—समिता, चण्डा और जाता (१५८)। इसी प्रकार जैसे चमर की यावत् उसकी अग्रमहिषियों की परिषदों का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार शक्र देवेन्द्र के सामानिकों और त्रायस्त्रिंशकों की तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (१५९) । इसी प्रकार ईशानेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक के सभी इन्द्रों, उनकी अग्रमहिषियों, सामानिक, लोकपाल और त्रायस्त्रिंशक देवों की भी तीन-तीन परिषद् जाननी चाहिए (१६०)। याम-सूत्र १६१- तओ जामा पण्णत्ता, तं जहा–पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६२तिहिं जामेहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज सवणयाए, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६३ – एवं जाव [तिहिं जामेहिं आया केवलं बोधिं बुझेजा, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। (१६४– तिहिं जामेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे।) १६५– तिहिं जामेहिं आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६६तिहिं जामेहिं आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा–पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६७– तिहिं जामेहिं आया केवलेणं संवरेणं संवरेजा, तं जहा—पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। १६८– तिहिं जामेहिं आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेजा, तं जहा—पढमे जामे,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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