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________________ १०८ स्थानाङ्गसूत्रम् के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (७९)। इसी प्रकार सामानिक, त्रायस्त्रिंशक और लोकपाल देव, अग्रमहिषी देवियां, पारिषद्य देव, अनीकाधिपति तथा आत्मरक्षक देव तीन कारणों से शीघ्र मनुष्यलोक में आते हैं । (अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रवजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय।) (८०)। विवेचन- जो आज्ञा-ऐश्वर्य को छोड़ कर स्थान, आयु, शक्ति, परिवार और भोगोपभोग आदि में इन्द्र के समान होते हैं, उन्हें सामानिक देव कहते हैं । इन्द्र के मन्त्री और पुरोहित स्थानीय देवों को त्रायस्त्रिंश देव कहते हैं। यतः इनकी संख्या ३३ होती हैं, अतः उन्हें त्रायस्त्रिंश कहा जाता है। देवलोक का पालन करने वाले देवों को लोकपाल कहते हैं। इन्द्रसभा के सदस्यों को पारिषद्य, देवसेना के स्वामी को अनीकाधिपति और इन्द्र के अंगरक्षक को आत्म-रक्षक कहते हैं। ८१- तिहिं ठाणेहिं देवा अब्भुट्ठिज्जा, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव तं चेव [अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु]। ८२– एवं आसणाई चलेजा, सीहनायं करेजा, चेलुक्खेवं करेजा [तिहिं ठाणेहिं देवाणं आसणाइं चलेजा, तं जहा अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। ८३– तिहिं ठाणेहिं देवा सीहणायं करेजा, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। ८४– तिहिं ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं करेजा, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु]। ८५-तिहिं ठाणेहिं चेइयरुक्खा चलेजा, तं जहा—अरहंतेहिं [जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु]। ८६– तिहिं ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। तीन कारणों से देव अपने सिंहासन से तत्काल उठ खड़े होते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर (अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय) (८१)। इसी प्रकार 'आसनों' का चलना, सिंहनाद करना और चेलोत्क्षेप करना भी जानना चाहिए। [तीन कारणों से देवों के आसन चलायमान होते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (८२)। तीन कारणों से देव सिंहनाद करते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (८३)। तीन कारणों से देव चेलोत्क्षेप (वस्त्रों का उछालना) करते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (८४)।] तीन कारणों से देवों के चैत्य वृक्ष चलायमान होते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर [अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (८५) ।] तीन कारणों से लोकान्तिक देव तत्काल मनुष्यलोक में आते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (८६)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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