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तृतीय स्थान – प्रथम उद्देश अन्धकार-उद्योत-आदि-सूत्र
७२– तिहिं ठाणेहिं लोगंधयारे सिया, तं जहा—अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंत-पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिजमाणे। ७३– तिहिं ठाणेहिं लोगुजोते सिया, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु।
तीन कारणों से मनुष्यलोक में अंधकार होता है-अरहंतों के विच्छेद (निर्वाण) होने पर, अर्हत-प्रज्ञप्त धर्म के विच्छेद होने पर और चतुर्दश पूर्वगत श्रुत के विच्छेद होने पर (७२)। तीन कारणों से मनुष्यलोक में उद्योत (प्रकाश) होता है—अरहन्तों (तीर्थंकरों) के जन्म लेने के समय, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (७३)।
७४ - तिहिं ठाणेहिं देवंधकारे सिया, तं जहा—अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंत-पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे। ७५– तिहिं ठाणेहिं देवुजोते सिया, तं जहा अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु।
तीन कारणों से देवलोक में अंधकार होता है—अरहन्तों के विच्छेद होने पर, अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म के विच्छेद होने पर और पूर्वगत श्रुत के विच्छेद होने पर (७४)। तीन कारणों से देवलोक के भवनों आदि में उद्योत होता है अरहन्तों के जन्म लेने के समय, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की • महिमा के समय (७५)।
७६– तिहिं ठाणेहिं देवसण्णिवाए सिया, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। ७७– एवं देवुक्कलिया, देवकहकहए [तिहिं ठाणेहिं देवुक्कलिया सिया, तं जहा अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु।७८तिहिं ठाणेहिं देवकहकहए सिया, तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु]। ७९- तिहिं ठाणेहिं देविंदा माणुसं लोगं हव्वमागच्छंति, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु। ८०– एवं सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीओ देवीओ, परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिवई देवा, आयरक्खा देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छंति [तं जहा—अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु]।
तीन कारणों से देव-सन्निपात (देवों का मनुष्यलोक में आगमन) होता है—आरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (७६)। इसी प्रकार देवोत्कलिका और देव कह-कह भी जानना चाहिए। तीन कारणों से देवोत्कलिका (देवताओं की सामूहिक उपस्थिति) होती है—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (७७)। तीन कारणों से देव कह-कह (देवों का कल-कल शब्द) होता है—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों के प्रव्रजित होने के समय और अरहन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा के समय (७८)। तीन कारणों से देवेन्द्र शीघ्र मनुष्यलोक में आते हैं—अरहन्तों के जन्म होने पर, अरहन्तों