________________
१०३
तृतीय स्थान — प्रथम उद्देश
को भृतक कहते हैं तथा जो खेती, व्यापार आदि में तीसरे, चौथे आदि भाग को लेकर कार्य करते हैं, उन्हें भाइल्लक, भागी या भागीदार कहते हैं। वर्तमान में दासप्रथा समाप्तप्राय: है, दैनिक या मासिक वेतन पर काम करने वाले या खेती व्यापार में भागीदार बनकर काम करने वाले ही पुरुष अधिकतर पाये जाते हैं ।
मत्स्य - सूत्र
३६ - तिविहा मच्छा पण्णत्ता, तं जहा— अंडया, पोयया, संमुच्छिमा । ३७– अंडया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा । ३८ – पोतया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ।
मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं- अण्डज (अण्डे से उत्पन्न होने वाले), पोतज (बिना आवरण के उत्पन्न होने वाले) और सम्मूर्च्छिम (इधर-उधर के पुद्गल - संयोगों से उत्पन्न होने वाले ) ( ३६ ) । अण्डज मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेद वाले (३७) । पोतज मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेद वाले। (संमूर्च्छिम मत्स्य नपुंसक ही होते हैं) (३८)।
पक्षि- सूत्र
३९ - तिविहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहा— अंडया, पोयया, संमुच्छिमा । ४० अंडया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा । ४१ – पोयया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा।
पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं—अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम (३९) । अण्डज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेदवाले (४०)। पोतज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, और नपुंसक पुरुष
वेदवाले (४१) ।
परिसर्प - सूत्र
४२ — एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरिसप्पा वि भाणियव्वा, भुजपरिसप्पा वि [ तिविहा उरपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा— अंडया, पोयया, संमुच्छिमा । ४३—– अंडया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा । ४४– पोयया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा इत्थी, पुरिसा, पुंगा । ४५ तिविहा भुजपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा— अंडया, पोयया, संमुच्छिमा । ४६— अंडया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा । ४७ पोयया भुजपरिसप्पा तं जहा — इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ] ।
तिविहा पण्णत्ता,
इसी प्रकार उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प का भी कथन जानना चाहिए। [ उर परिसर्प तीन प्रकार के कहे गये और हैं— अण्डज, , पोतज और सम्मूर्च्छिम (४२) । अण्डज उर-परिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, पुरुष नपुंसक वेदवाले (४३) । पोतज उरपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं— स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेदवाले (४४) । भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं—– अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम (४५) । अण्डज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री, पुरुष और नपुंसक वेद वाले (४६) । पोतज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गये हैं—स्त्री,