________________
१०२
स्थानाङ्गसूत्रम्
के समान हैं। पुरुषजात-सूत्र
२९- तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा—णामपुरिसे, ठवणपुरिसे, दव्वपुरिसे। ३०तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—णाणपुरिसे, दंसणपुरिसे, चरित्तपुरिसे। ३१- तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा वेदपुरिसे, चिंधपुरिसे, अभिलावपुरिसे। ३२– तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, तं जहा उत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, जहण्णपुरिसा। ३३– उत्तमपुरिसा तिकिहा पण्णत्ता, तं जहा—धम्मपुरिसा, भोगपुरिसा, कम्मपुरिसा। धम्मपुरिसा अरहंता, भोगपुरिसा चक्कवट्टी, कम्मपुरिसा वासुदेवा। ३४– मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा—उग्गा, भोगा, राइण्णा। ३५– जहण्णपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–दासा, भयणा, भाइल्लगा। ___पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—नामपुरुष, स्थापनापुरुष और द्रव्यपुरुष (२९)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—ज्ञानपुरुष, दर्शनपुरुष और चारित्रपुरुष (३०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—वेदपुरुष, चिह्नपुरुष और अभिलापपुरुष (३१) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और जघन्य पुरुष (३२)। उत्तम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—धर्मपुरुष (अरहन्त), भोगपुरुष (चक्रवर्ती) और कर्मपुरुष (वासुदेव) (३३)। मध्यम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—उग्र, भोग और राजन्य (३४)। जघन्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—दास, भृतक और भागीदार (३५)।
विवेचन- उक्त सूत्रों में कहे गये विविध प्रकार के पुरुषों का स्पष्टीकरण इस प्रकार हैनामपुरुष- जिस चेतन या अचेतन वस्तु का 'पुरुष' नाम हो वह। । स्थापनापुरुष–पुरुष की मूर्ति या जिस किसी अन्य वस्तु में 'पुरुष' का संकल्प किया हो वह । द्रव्यपुरुष–पुरुष रूप में भविष्य में उत्पन्न होने वाला जीव या पुरुष का मृत शरीर। दर्शनपुरुष— विशिष्ट सम्यग्दर्शन वाला पुरुष । चारित्रपुरुष–विशिष्ट चारित्र से सम्पन्न पुरुष। वेदपुरुष– पुरुषवेद का अनुभव करने वाला जीव। चिह्नपुरुष— दाढ़ी-मूंछ आदि चिह्नों से युक्त पुरुष। अभिलापपुरुष- लिंगानुशासन के अनुसार पुल्लिंग द्वारा कहा जानेवाला शब्द।
उत्तम प्रकार के पुरुषों में भी उत्तम धर्मपुरुष तीर्थंकर अरहन्त देव होते हैं। उत्तम प्रकार के मध्यम पुरुषों में भोगपुरुष चक्रवर्ती माने जाते हैं और उत्तम प्रकार के जघन्यपुरुषों में कर्मपुरुष वासुदेव नारायण कहे गये हैं।
मध्यम प्रकार के तीन पुरुष उग्र, भोग या भोज और राजन्य हैं। उग्रवंशी या प्रजा-संरक्षण का कार्य करने वालों को उग्रपुरुष कहा जाता है। भोग या भोजवंशी एवं गुरु, पुरोहित स्थानीय पुरुषों को भोग या भोज पुरुष कहा जाता है। राजा के मित्र-स्थानीय पुरुषों को राजन्य पुरुष कहते हैं।
जघन्य प्रकार के पुरुषों में दास, भृतक और भागीदार कर्मकर परिगणित हैं। मूल्य से खरीदे गये सेवक को दास कहा जाता है। प्रतिदिन मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूर को या मासिक वेतन लेकर काम करने वाले