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________________ ६६ स्थानाङ्गसूत्रम् चेव । २८४ - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—णीलवंतकूडे चेव, उवदंसकूडे चेव । २८५ – एवं रुप्पिंमि वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता — बहुसमतुल्ला जाव तं जहा रुप्पिकूडे चेव, मणिकंचणकूटे चेव । २८६ — एवं सिहरिंमि वासहरपव्वते दो कूडा पण्णत्ता— बहुसमतुल्ला जाव तं जहा — सिहरिकूडे चेव, तिगिंछकूडे चेव । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत से दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत से ऊपर दो कूट (शिखर) कहे गये हैं- चुल्ल हिमवत्कूट और वैश्रमणकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते ( २८१) । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत से दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं—–— महाहिमवत्कूट और वैडूर्यकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व यावत् संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते ( २८२ ) । इसी प्रकार जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण में निषध पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं— निषधकूट और रुचकप्रभकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, , विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२८३) । जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में नीलवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट कहे गये हैं— नीलवन्तकूट और उपदर्शनकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२८४) । इसी प्रकार जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में रुक्मी वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट हैं—– रुक्मीकूट और मणिकांचनकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२८५) । इसी प्रकार जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत के ऊपर दो कूट हैं – शिखरीकूट और तिगिंछकूट । वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते (२८६) । महाद्रह- पद २८७- - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं चुल्लहिमवंत - सिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टंति आयाम - विक्खंभ-उव्वेहसंठाण - परिणाहेणं, तं जहा पउमद्दहे चेव, पोंडरीयद्दहे चेव । तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति तं जहा सिरी चेव, लच्छी चेव । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पर पद्मद्रह (पद्महृद) और उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत पर पौण्डरीक द्रह (हद) कहे गये हैं। वे दोनों क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं; उनमें कोई विशेषता नहीं है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है। वे आयाम, विष्कम्भ,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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