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________________ द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश ६७ उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं । वहाँ महान् त्रद्धिवाली यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाली दो देवियाँ रहती हैं—पद्मद्रह में श्री और पौण्डरीकद्रह में लक्ष्मी (२८७)। २८८— एवं महाहिमवंत - रुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पण्णत्ता— बहुसमतुल्ला जाव तं जहा— महापउमद्दहे चेव, महापोंडरीयद्दहे चेव । तत्थ णं दो देवयाओ हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव । इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मी वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं, जो क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् वे आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं । वहाँ दो देवियाँ रहती हैं—महापद्मद्रह में ह्री और महापौण्डरीकद्रह में बुद्धि (२८८) । २८९ – एवं सिढ - णीलवंतेसु तिगिंछद्दहे चेव, केसरिद्दहे चेव । तत्थ णं दो देवताओ धिती चेव, कित्ती चेव । इसी प्रकार निषेध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं, जो क्षेत्र - प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् वे आयाम, विष्कम्भ, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहाँ दो देवियाँ रहती हैं- तिगिंछिद्रह में धृति और केसरीद्रह में कीर्ति (२८९) । महानदी-पद २९० जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दहिणे णं महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ महापउमद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा—रोहियच्चेव, हरिकंतच्चेव । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के महापद्मद्रह से रोहिता और हरिकान्ता नाम की दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं (२९० ) । २९१ - एवं सिढाओ वासहरपव्वयाओ तिगिंछद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा— हरिच्चेव, सीतोदच्चेव । इसी प्रकार निषेध वर्षधर पर्वत के तिगिंछद्रह नामक महाद्रह से हरित और सीतोदा नाम की दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं । २९२– - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंताओ वासहरपव्वताओ केसरिहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा सीता चेव, णारिकंता चेव । जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरी नामक महाद्रह से सीता और नारीकान्ता नाम की दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं (२९२) । २९३ एवं रुप्पीओ वासहरपव्वताओ महापोंडरीयद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा— रकंता चेव, रुप्पकूला चेव । इसी प्रकार रुक्मी वर्षधर पर्वत के महापौण्डरीक द्रह नामक महाद्रह से नरकान्ता और रुप्पकूला नाम की दो
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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