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________________ द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में उत्तरकुरु के पूर्व पार्श्व में गन्धमादन और पश्चिम पार्श्व में माल्यवत् नाम के दो वक्षार पर्वत कहे गये हैं । वे अश्व-स्कन्ध में सदृश (आदि में नीचे और अन्त में ऊँचे) तथा अर्धचन्द्र के आकार से अवस्थित हैं । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२७७)। २७८- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो दीहवेयड्डपव्वया पण्णत्ताबहुसमतुल्ला जाव तं जहा—भारहे चेव, दीहवेयड्ढे, एरवते चेव दीहवेयड्डे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत से उत्तर और दक्षिण में दो दीर्घ वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं। ये क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। उनमें से एक दीर्घ वैताढ्य भरत क्षेत्र में है और दूसरा दीर्घ वैताढ्य ऐरवत क्षेत्र में है (२७८)। गुहा-पद २७९- भारहए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ—बहुसमतुल्लाओ अविसेसमणाणत्ताओ अण्णमण्णं णातिवटुंति आयाम-विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा तिमिसगुहा चेव, खंडगप्पवाय-गुहा चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा कयमालए चेव, णट्टमालए चेव। २८०- एरवए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ जाव तं जहा कयमालए चेव, णट्टमालए चेव। भरतक्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत में तमिस्रा और खण्डप्रपात नामकी दो गुफाएं कही गई हैं। वे दोनों क्षेत्रप्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। उनमें महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं—तमिस्रा में कृतमालक देव और खण्डप्रपात गुफा में नृत्तमालक देव (२७९) । ऐरवत क्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत में तमिस्रा और खण्डप्रपात नाम की दो गुफाएं कही गई हैं । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती हैं। उनमें महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं—तमिस्रा में कृतमालक और खण्डप्रपात गुफा में नृत्तमालक देव (२०८)। कूट-पद २८१- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता- बहुसमतुल्ला जाव विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा—चुल्लहिमवंतकूडे चेव, वेसमणकूडे चेव। २८२- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—महाहिमवंतकूडे चेव, वेरुलियकूडे चेव। २८३एवं णिसढे वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—णिसढकूडे चेव, रुयगप्पभे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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