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________________ ६४ स्थानाङ्गसूत्रम् २७४– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हेमवत-हेरण्णवतेसु वासेसु दो वट्टवेयड्डपव्वता पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता णातिवद्वृति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेहसंठाण-परिणाहेणं, तं जहा सद्दावाती चेव, वियडावाती चेव।। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा साती चेव, पभासे चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हैमवत और उत्तर में हैरण्यवत क्षेत्र में दो वृत्त वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं, जो परस्पर क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। उन पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं—दक्षिण दिशा में स्थित शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर स्वाति देव और उत्तर दिशा में स्थित विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर प्रभास देव (२७४)। २७५- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हरिवास-रम्मएसु वासेसु दो वट्टवेयड्डपव्वया पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—गंधावाती चेव, मालवंतपरियाए चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा—अरुणे चेव, पउमे चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में, हरिक्षेत्र में गन्धापाती और उत्तर में रम्यकक्षेत्र में माल्यवत्पर्याय नामक दो वृत्त वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं। दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का उल्लंघन नहीं करते हैं। उन पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं—गन्धापाती पर अरुणदेव और माल्यवत्पर्याय पर पद्मदेव (२७५)। २७६-- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पुव्वावरे पासे, एत्थ णं आसक्खंधग-सरिसा अद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता बहुसमतुल्ला. जाव तं जहा सोमणसे चेव, विजुप्पभे चेव। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में देवकुरु के पूर्व पार्श्व में सौमनस और पश्चिम पार्श्व में विद्युत्प्रभ नाम के दो वक्षार पर्वत कहे गये हैं। वे अश्व-स्कन्ध के सदृश (आदि में नीचे और अन्त में ऊँचे) तथा अर्धचन्द्र के आकार से अवस्थित हैं। वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२७६)। २७७– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पुव्वावरे पासे, एत्थ णं आसक्खंधग-सरिसा अद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव तं जहा—गंधमायणे चेव, मालवंते चेव।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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