________________
द्वितीय स्थान तृतीय उद्देश
कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से भी उनमें कोई विभिन्नता नहीं है। इनका आयाम, विष्कम्भ और परिधि भी एक दूसरे के समान है (२७० ) ।
२७१ - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर - दाहिणे णं दो कुराओ पण्णत्ताओबहुसमतुल्लाओ जाव देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव ।
६३
तत्थ णं दो महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता — बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवति आयाम - विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा कूडसामली चेव, जंबू चेव सुदंसणा । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला महासोक्खा पलिओवमट्टितीया परिवंसति, तं जहा——रुले चेव वेणुदेवे अणाढिते चेव जंबुद्दीवाहिवती ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो कुरु कहे गये हैं—उत्तर में उत्तरकुरु और दक्षिण में देवकुरु । ये दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, नगर-नदी आदि की दृष्टि में उनमें कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहां (देवकुरु में) कूटशाल्मली और (उत्तरकुरु में ) सुदर्शन जम्बू नाम के दो अति विशाल महावृक्ष हैं। वे दोनों प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध (मूल, गहराई), संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। उन पर महान् ऋद्धिवाले, महा द्युतिवाले, महाशक्तिवाले, महान् यशवाले, महान् बलवाले, महान् सौख्यवाले और एक पल्योपम की स्थितिवाले दो देव रहते हैं— कूटशाल्मली वृक्ष पर सुपर्णकुमार जाति का गरुड वेणुदेव और सुदर्शन जम्बूवृक्ष पर जम्बूद्वीप का अधिपति अनादृत देव (२७१)।
पर्वत -
-पद
२७२ - जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पण्णत्ता— बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टंति आयाम - विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा— चुल्लहिमवंते चेव, सिहरिच्चेव । २७३ – एवं महाहिमवंते चेव, रूप्पिच्चेव । एवं णिसढे चेव, णीलवंते चेव ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत कहे गये हैं—दक्षिण में क्षुल्लक हिमवान् और उत्तर में शिखरी। ये दोनों क्षेत्र- प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, उनमें परस्पर कोई विशेषता नहीं है, कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई विभिन्नता नहीं है, वे आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि की अपेक्षा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२७२) । इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मी तथा निषध और नीलवन्त पर्वत भी परस्पर में क्षेत्र - प्रमाण, कालचक्र-परिवर्तन, आयाम, विष्कम्भ, उच्चत्व, उद्वेध, संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं (२७३) । (महाहिमवान और निषध पर्वत मन्दर के दक्षिण में हैं, और नीलवन्त तथा रुक्मी मन्दर के उत्तर में हैं ।)