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________________ द्वितीय स्थान द्वितीय उद्देश ५३ दो प्रकार से आत्मा ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है—वैक्रियशरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है। वैक्रियशरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है। अधोवधि वैक्रियशरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किए बिना भी अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है (१९९)। २००- दोहिं ठाणेहिं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा विउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइपासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है—वैक्रिय शरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है। वैक्रिय शरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है। अधोवधि वैक्रिय शरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किये बिना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है (२००)। देशतः-सर्वतः श्रवणादि-पद २०१– दोहिं ठाणेहिं आया सहाई सुणेति, तं जहा–देसेण वि आया सद्दाइं सुणेति, सव्वेण वि आया सद्दाइं सुणेति। २०२- दोहिं ठाणेहिं आया रूवाइं पासइ, तं जहा–देसेण वि आया रूवाइं पासइ, सव्वेण वि आया रूवाइं पासइ। २०३- दोहिं ठाणेहिं आया गंधाइं अग्घाति, तं जहा देसेण वि आया गंधाइं अग्घाति, सव्वेण वि आया गंधाइं अग्घाति। २०४- दोहिं ठाणेहिं आया रसाइं आसादेति, तं जहा–देसेण वि आया रसाइं आसादेति, सव्वेण वि आया रसाइं आसादेति। २०५ - दोहिं ठाणहिं आया फासाइं पडिसंवेदेति, तं जहा—देसेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेति, सव्वेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेति। दो प्रकार से आत्मा शब्दों को सुनता है—एक देश (एक कान) से भी आत्मा शब्दों को सुनता है और सर्व से (दोनों कानों से) भी आत्मा शब्दों को सुनता है (२०१)। दो प्रकार से आत्मा रूपों को देखता है—एक देश (नेत्र) से भी आत्मा रूपों को देखता है और सर्व से भी आत्मा रूपों को देखता है (२०२)।दो प्रकार से आत्मा गन्धों को सूंघता है—एक देश (नासिका) से भी आत्मा गन्धों को सूंघता है और सर्व से भी गन्धों को सूंघता है (२०३)। दो प्रकार से आत्मा रसों का आस्वाद लेता है—एक देश (रसना) से भी आत्मा रसों का आस्वाद लेता है और सम्पूर्ण से भी रसों का आस्वाद लेता है (२०४) । दो प्रकार से आत्मा स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करता है—एक देश से भी आत्मा स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करता है और सम्पूर्ण से भी आत्मा स्पर्शों का प्रतिसंवेदन करता है (२०५)। विवेचन— श्रोत्रेन्द्रिय आदि इन्द्रियों का प्रतिनियत क्षयोपशम होने पर जीव शब्द आदि को श्रोत्र आदि इन्द्रियों के द्वारा सुनता देखता आदि है। संस्कृत टीका के अनुसार 'एक देश से सुनता है' का अर्थ एक कान की श्रवण शक्ति नष्ट हो जाने पर एक ही कान से सुनता है और सर्व का अर्थ दोनों कानों से सुनता है—ऐसा किया है। यही बात नेत्र, रसना आदि के विषय में भी जानना चाहिए। साथ ही यह भी लिखा है कि संभिन्न श्रोतृलब्धि से युक्त
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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