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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् जीव समस्त इन्द्रियों से भी सुनता है अर्थात् सारे शरीर से सुनता है। इसी प्रकार इस लब्धिवाला जीव रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का ज्ञान किसी भी एक इन्द्रिय से और सम्पूर्ण शरीर से कर सकता है। २०६– दोहिं ठाणेहिं आया ओभासति, तं जहा—देसेण वि आया ओभासति, सव्वेण वि आया ओभासति। २०७-एवं-पभासति, विकुव्वति, परियारेति, भासं भासति, आहारेति, परिणामेति, वेदेति, णिजरेति। २०८- दोहिं ठाणेहिं देवे सदाइं सुणेति, तं जहा–देसेण वि देवे सदाइं सुणेति, सव्वेण वि देवे सदाइं सुणेति जाव णिजेरति। — दो स्थानों से आत्मा अवभास (प्रकाश) करता है—खद्योत के समान एक देश से भी आत्मा अवभास करता है और प्रदीप की तरह सर्व रूप से भी अवभास करता है (२०६)। इसी प्रकार दो स्थानों से आत्मा प्रभास (विशेष प्रकाश) करता है, विक्रिया करता है, प्रवीचार (मैथुन सेवन) करता है, भाषा बोलता है, आहार करता है, उसका परिणमन करता है, उसका अनुभव करता है और उसका उत्सर्ग करता है (२०७)। दो स्थानों से देव शब्द सुनता है—शरीर के एक देश से भी देव शब्दों को सुनता है और सम्पूर्ण शरीर से भी देव शब्द सुनता है । इसी प्रकार देव दोनों स्थानों से अवभास करता है, प्रभास करता है, विक्रिया करता है, प्रवीचार करता है, भाषा बोलता है, आहार करता है, उसका परिणमन करता है, उसका अनुभव करता है और उसका उत्सर्ग करता है (२०८)। शरीर-पद २०९- मरुया देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—'एगसरीरी चेव दुसरीरी' चेव। २१० – एवं किण्णरा किंपुरिया गंधव्वा णागकुमारा सुवण्णकुमारा अग्गिकुमारा वायुकुमारा। २११- देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—'एयसरीरी चेव, दुसरीरी' चेव। मरुत् देव दो प्रकार के कहे गये हैं—एक शरीर वाले और दो शरीर वाले (२०९)। इसी प्रकार किन्नर, किम्पुरुष, गन्धर्व, नागकुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार ये सभी देव दो-दो प्रकार के हैं—एक शरीर वाले और दो शरीर वाले (२१०)। (शेष) देव दो प्रकार के कहे गये हैं—एक शरीरवाले और दो शरीर वाले (२११)। विवेचन- तीर्थंकरों के निष्क्रमण कल्याणक के समय आकर उनके वैराग्य के समर्थक लोकान्तिक देवों का एक भेद मरुत् है। अन्तरालगति में एक कार्मण शरीर की अपेक्षा एक शरीर कहा गया है और भवधारणीय शरीर के साथ कार्मणशरीर की अपेक्षा दो शरीर कहे गये हैं। अथवा भवधारणीय वैक्रिय शरीर की अपेक्षा एक और उत्तर वैक्रिय शरीर की अपेक्षा से दो शरीर बतलाए गए हैं। मरुत् देव को उपलक्षण मानकर शेष लोकान्तिक देवों के भी एक शरीर और दो शरीरों का निर्देश इस सूत्र से किया गया जानना चाहिए। इस प्रकार सूत्र २१० में यद्यपि किन्नर आदि तीन व्यन्तर देवों का और नागकुमार आदि चार भवनपति देवों का निर्देश किया गया है, तथापि इन्हें उपलक्षण मानकर शेष व्यन्तरों और शेष भवनपतियों को भी एक शरीरी और दो शरीरी जानना चाहिए। उक्त देवों के सिवाय ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के एक शरीरी और दो शरीरी होने का निर्देश सूत्र २११ से किया गया है। ॥ द्वितीय उद्देश समाप्त ॥
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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