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________________ ५२ स्थानाङ्गसूत्रम् आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोकं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है—वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है । वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानतादेखता है। अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके, या किए बिना भी अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है (१९५)। १९६- दोहिं ठाणेहिं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइपासइ। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है—वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है। वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है। अधोवधि (परमावधि की अपेक्षा नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या किए बिना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है (१९६)। १९७- दोहिं ठाणेहिं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा—विउव्विंतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता-देखता है—वैक्रिय शरीर का निर्माण करने पर आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। वैक्रिय शरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। अधोवधि ज्ञानी वैक्रियशरीर का निर्माण करके या किए बिना भी अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है (१९७)। १९८- दोहिं ठाणेहिं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा विउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, अविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा तिर्यक्लोक को जानता-देखता है—वैक्रियशरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है। वैक्रियशरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है। अधोवधि वैक्रियशरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किए बिना भी अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है (१९८)। १९९-दोहिं ठाणेहिं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा विउव्वितेणं चेव आता उड्डलोगं जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उहुलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्डलोगं जाणइ-पासइ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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