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________________ द्वितीय स्थान द्वितीय उद्देश दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८७)। ___ पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—परीत संसारी (जिनका संसार-वास सीमित रह गया है) और अनन्त संसारी (जिनके संसार-वास का कोई अन्त नहीं है)। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८८)। __ पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—संख्येय काल स्थिति वाले और असंख्येय काल स्थिति वाले। इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वाण-व्यन्तर पर्यन्त सभी पञ्चेन्द्रिय जीवों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१८९)। (ज्योतिष्क और वैमानिक असंख्येय काल की स्थिति वाले ही होते हैं और एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय जीव संख्यात काल की स्थिति वाले ही होते हैं।) पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—सुलभ बोधि वाले और दुर्लभ बोधि वाले। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१९०)। पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—कृष्णपाक्षिक और शुक्लपाक्षिक। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त दो-दो भेद जानना चाहिए (१९१)। पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं—चरम (नरक में पुनः जन्म नहीं लेने वाले) और अचरम (नरक में भविष्य में भी जन्म लेने वाले)। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (१९२)। अधोऽवधिज्ञान-दर्शन-पद १९३- दोहिं ठाणेहिं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासई, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है—(१) वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। (२) वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। (३) अधोवधि (परमावधिज्ञान से नीचे के नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या किए बिना भी अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है (१९३)। १९४ - दोहिं ठाणेहिं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से आत्मा तिर्यक्लोक को जानता-देखता है वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है। वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है। अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला—परमावधि से नीचे का अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या बिना किए भी अवधिज्ञान से तिर्यक्लोक को जानता-देखता है (१९४)। १९५ - दोहिं ठाणेहिं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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