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________________ प्रथम अध्ययन चउत्थो उद्देसओ चतुर्थ उद्देशक संखडि-गमन-निषेध ३४८. से भिक्खू वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, मंसादियं १ वा मच्छादियं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा संमेलं वा हीरमाणं १. निशीथसूत्र (उद्दे-११) में इससे मिलता-जुलता पाठ और साथ में चूर्णिकारकृत उसकी व्याख्या भी देखिये जे भिक्खू मंसादियं वा मच्छादियं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा हिंगोलं वा सम्मेलं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं विरूवरूवं हीरमाणं पेहाए। अत्र चूर्णि:- जे भिक्खु मसांदियं वा इत्यादि। जम्मि पगरणे मंसं आदीए दिज्जति पच्छा ओदणादि तं मंसादि भन्नति, मंसाण वा गच्छंता आदावेव पगरणं करेंति तं वा मंसादी, आणिएसु मंसेसु आदावेव जणवयस्य मंसपगरणं करेंति पच्छा सयं परिभुंजंति तं वा मंसादी भन्नति । एवं मच्छादियं पि वत्तव्वं । मंसखलं जत्थ मंसाणि सोसिज्जति । एवं मच्छखलं पि जमन्नगिहातो आणिज्जति तं आहेणं। जमन्नगिहं निजति तं पहेणगं। अधवा जं वधुघरातो वरघरं निज्जति तं आहेणं, जं वरघरातो वधुघरं निजति तं पहेगणगं। अधवा वरवधूण जं आभव्वं परोप्परं निजति तं सव्वं आहेणगं, जमन्नतो निजति तं पहेणगं । सव्वाणमादियाण जं हिजई निज्जई त्ति तं हिंगोलं, अधवा जं मयभतं करदुगादियं तं हिंगोलं। विवाहभत्तं सम्मेलं, अधवा सम्मेलो गोट्ठी, तीए भत्तं सम्मेलं भण्णति । अहवा कम्मारंभेसु ल्हासिगा जे ते सम्मेला, तेसि जं भत्तं तं सम्मेलं। गिहातो उजाणादिसु हीरंतं नीयमानमित्यर्थः। पेहा प्रेक्ष्य'; इति। अर्थात्- 'जे भिक्खू मंसादियं वा इत्यादि।' जिस प्रकरण (संखड़ी-भोज) में प्रारम्भ में मांस दिया/परोसा जाता है, बाद में चावल आदि उसे मांसादिक (भोज) कहते हैं। मांसाशियों के चले जाने की सम्भावना देखकर पहले ही मांस का भोजन बनाता है, उसे भी मंसादि भोज कहते हैं, अथवा मांस के लाये जाने पर प्रारम्भ में ही जनपद को मांस भोजन कराता है, फिर स्वयं उपभोग करता है, उसे भी मंसादी कहते हैं। उसी प्रकार मत्स्यादि का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। मंसखलं-का अर्थ है जहाँ मांस सुखाया जाता है। इसी प्रकार मत्स्यखल भी समझ लेना चाहिए। जिसे अन्य घर से लाया जाता है तब किये जाने वाले भोज को 'आहेणं' कहते हैं। अथवा जब वधू अपने पितृगृह से वरगृह में लायी जाती है उसे आहेणं और जब वरगृह से वधू अपने पितृगृह में लायी जाती है तब उसे कहते हैं 'पहेणं'। अथवा जब अन्यत्र ले जाया जाता है, . तब भी 'पहेणं' कहते हैं । अथवा वर-वधू को आजन्म परस्पर (सम्बन्ध जोड़ने के लिए) ले जाया जाता हैं, वहाँ गोष्ठ की जाती है, उसे कहते हैं-आहेणं । जब अन्य उन्हें कोई ले जाता है, तब उस भोज को 'पहेणग' कहते हैं। सब भोजों के आदि में जो ले जाया जाता है उसे हिंगोल अथवा जो मृतक भोज करंद्विकादिक होता है, उसे भी हिंगोल कहते हैं। विवाह के निमित्त जो भोज होता है वह सम्मेल होता है, अथवा सम्मेल कहते हैं गोष्ठी-मिलन को, उसके निमित्त जो भोजन होता है उसे भी सम्मेल कहते हैं, अथवा किसी व्यवसाय या कार्य के प्रारम्भ में जो नर्तक एकत्रित होकर गाते-बजाते हैं, उसे भी सम्मेल कहते हैं। उसके साथ जो भोजन होता है उसे भी सम्मेल कहते हैं। घर के उद्यान आदि में ले जाते हुए को भी 'सम्मेल' कहा जाता है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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