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पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ७७०-७७१
'वियत्ताए' आदि पदों का अर्थ-विवत्ताए-द्वितीय। 'साडगं'–शाटक—देवदूष्य वस्त्र । पाईणगामिणीए-पूर्वगामिनी। ईसिंरतणिप्पमाणं-थोड़े से बद्धमुष्टिहाथ (रलि) प्रमाण । अच्छोप्पेणं- अस्पृष्ट (ऊँची) रखकर। णिसीदति- बैठ जाते हैं। आमुयति-उतारते हैं। जन्नुपायपडिते-घुटने टेक कर चरणों में गिरा। पडिच्छति- ग्रहण कर लेता है। वइरामएणं थालेणं- वज्रमय थाल में - साहरति - डाल या बहा देता है। -आलेक्खचित्तभूतमिव ठवेति-आलिखित चित्र की-तरह स्तब्ध रह गई। णिलुक्को-तिरोहित हो गया, स्थगित हो गया। अहोणिसं-अहर्निश —दिन रात।१ मनःपर्यवज्ञान की उपलब्धि और अभिग्रह-ग्रहण __७६९. ततो णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवनस्स मणपज्जवणाणे णामं णाणे समुप्पण्णे। अड्डाइजेहिं दीवहिं दोहिं य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पजताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणइ। जाणित्ता ततो णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-णाती-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसजेति। पडिविसज्जिता इमं एतारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हति-बारस वासाइं वोसट्ठकाए' चत्तदेहे जे केति उवसग्गा समुप्पजंति ,तंजहा दिव्वा वा माणुसा वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे सम्मं सहिस्सामि, खमिस्सामि, अधियासइस्सामि ।'
७६९. तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर को क्षायोपशमिक सामायिक चारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान नामक ज्ञान समुत्पन्न हुआ; जिसके द्वारा वे अढाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपञ्चेन्द्रिय, व्यक्तमन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट (प्रत्यक्ष) जानने लगे। इधर मनःपर्याय ज्ञान से मनोगत भावों को जानने लगे थे, उधर श्रमण भगवान् महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन-सम्बन्धिवर्ग को प्रतिविसर्जित (विदा) किया। विदा करके इस प्रकार का अभिग्रह धारण किया कि "मैं आज से बारह वर्ष तक अपने शरीर का व्युत्सर्ग करता हूँ- देह के प्रति ममत्व का त्याग करता हूँ।" इस अवधि में दैविक, मानुषिक या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई १. (क) पाइअ-सद्द-महण्णवो पृ.८८७, ७०६, ४०८
(ख) अर्थागम खण्ड-१ (आचारांग) पृ. १५७ २. 'अड्डाइजेहिं' के बदले पाठान्तर है- अड्डाइएहिं, अतिजेहिं। ३. 'सण्णीणं पंचेदियाणं' के बदले पाठान्तर है-'सण्णीपंचेंदियाणं'। ४. 'जाणित्ता' के बदले 'जाणेत्ता' पाठान्तर है। ५. 'वोसट्टकाए' के बदले पाठान्तर है- वोसटेकाए, वोसट्टकाते। ६. 'केति' के बदले पाठान्तर है-'केवि।' ७. 'समुप्पजति' के बदले पाठान्तर हैं- 'समुप्पजसु, समुप्पजिस्संति। समुप्पज्जति दिव्वा......।' ८. 'तेरिच्छिया वा' के 'तेरिच्छा वा' पाठान्तर है। अर्थ समान है। ९. 'अधियासइस्सामि' के बदले पाठान्तर है- 'अहियासहस्सामि।'