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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
से (मुंड) हाथ-प्रमाण ऊँचे (अस्पृष्ट) भूभाग पर धीरे-धीरे उस सहस्रवाहिनी चन्द्रप्रभा शिविका को रख देते हैं। तब भगवान् उसमें से शनैः शनैः नीचे उतरते हैं; और पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर अलंकारों को उतारते हैं। तत्काल ही वैश्रमणदेव घुटने टेककर श्रमण भगवान् महावीर के चरणों में झुकता है और भक्तिपूर्वक उनके उन आभरणालंकारों को हंसलक्षण सदृश श्वेत वस्त्र में ग्रहण करता है।
उसके पश्चात् भगवान् ने दाहिने हाथ से दाहिनी ओर के और बाएं हाथ से बाईं ओर के केशों का पंचमुष्टिक लोच किया। तत्पश्चात् देवराज देवेन्द्र शक्र श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष घुटने टेककर चरणों में झुकता है और उन केशों को हीरे के (वज्रमय) थाल में ग्रहण करता है। तदनन्तरभगवन्! आपकी अनुमति है, यों कहकर उन केशों को क्षीर समुद्र में प्रवाहित कर देता है।
इधर भगवान् दाहिने हाथ से दाहिनी और के ओर बाएं हाथ से बाईं ओर के केशों का पंचमुष्टिक लोच पूर्ण करके सिद्धों को नमस्कार करते हैं; और आज से मेरे लिए सभी पापकर्म अकरणीय हैं', यों उच्चारण करके सामायिक चारित्र अंगीकार करते हैं। उस समय देवों और मनुष्यों दोनों की परिषद् चित्रलिखित-सी निश्चेष्ट-स्थिर हो गई थी।
७६७. जिस समय भगवान् चारित्र ग्रहण कर रहे थे, उस समय शक्रेन्द्र के आदेश (वचन)से शीघ्र ही देवों के दिव्य स्वर, वाद्य के निनाद और मनुष्यों के शब्द स्थगित कर दिये गए (सब मौन हो गए) ॥ १२८॥
७६८. भगवान् चारित्र अंगीकार करके अहर्निश समस्त प्राणियों और भूतों के हित में संलग्न हो गए। सभी देवों ने यह सुना तो हर्ष से पुलकित हो उठे।
विवेचन भगवान् का अभिनिष्क्रमण और सामायिक चारित्र ग्रहण-सू. ७६६ से ७६८ तक भगवान् के अभिनिष्क्रमण एवं सामायिक चारित्र-ग्रहण का रोचक वर्णन है। इनमें मुख्यतया ७ बातों का प्रतिपादन किया गया है—(१) मास, पक्ष, दिन, मुहूर्त, नक्षत्र, छाया एवं प्रहर सहित दीक्षाग्रहण-समय का उल्लेख, (२) षष्ठभक्तयुक्त भगवान् की शिविका ज्ञातखण्ड उद्यान में पहुंची, (३) शिविका से उतरकर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर भगवान् विराजे, (४)आभूषण उतारे, जिन्हें वैश्रमणदेव ने श्वेतवस्त्र में सुरक्षित रख लिया, (५) केशों का पंचमुष्टिक लोच किया, शक्रेन्द्र ने वज्रमय थाल में ग्रहण करके भगवान् की अनुमति समझ कर क्षीरसागर में बहा दिया, (६) सिद्धों को नमस्कार करके सामायिक चारित्र अंगीकार किया। दीक्षा ग्रहण के समय देव और मनुष्य सभी चित्रलिखित-से हो गए। इन्द्र के आदेश से देवों. मनष्यों और वाद्यों के शब्द बंद कर दिये गये. (७) भगवान् अहर्निश समस्त प्राणियों के लिए हितकर-क्षेमंकर चारित्र में संलग्न हो गए। देवों ने जब यह सुना तो उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा।
१. आचारांग मूलपाठ सटिप्पण पृ० २७१ से २७३ ।