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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र ७४३ ३७३ (२) विवाह, (३) त्यागभाव और उदासीनता-पूर्वक पंचेन्द्रिय-काम-भोगों का उपभोग एवं उनका त्याग। दिगम्बर परम्परा भ० महावीर को अविवाहित मानती है। दिगम्बर ग्रंथों में उनके लिए 'कुमार' शब्द का प्रयोग हुआ है, श्वेताम्बर परम्परा में भी उनके लिए कुमार शब्द प्रयुक्त हुआ है। वही संभवतः उन्हें अविवाहित मानने की धारणा का पोषक बना हो। १ वस्तुतः 'कुमार' का अर्थ 'कुंआरा' - अविवाहित ही नहीं होता, उसका अर्थ राजकुमार युवराज आदि भी होता है, इसी अर्थ को व्यक्त करने के लिए 'कुमारवासम्मि पव्वइया' कहकर 'कुमार' शब्द का प्रयोग किया गया है। भगवान् महावीर के विवाह के सम्बन्ध में आचारांग में ही नहीं, कल्पसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, भाष्य एवं चूर्णि आदि प्राचीन साहित्य में पर्याप्त प्रमाण मिलते भगवान् के प्रचलित तीन नाम ७४३. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं इमे तिन्नि नामधेजा एवमाहिजंति, तंजहा-अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे, सहसम्मुइए समणे, भीमं५, भयभेरवं उरालं अचेलयं परीसहे सहति त्ति कट्ट देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे। ७४३. काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर के ये तीन नाम इस प्रकार कहे गए हैं(१) माता-पिता का दिया हुआ नाम-वर्द्धमान, (२) समभाव में स्वाभाविक सन्मति होने के कारण श्रमण, और (३) किसी प्रकार का भयंकर भय-भैरव उत्पन्न होने पर भी अविचल रहने तथा अचेलक रहकर विभिन्न परीषहों को समभावपूर्वक (उदार होकर) सहने के कारण देवों ने उनका नाम रखा-'श्रमण भगवान् महावीर'। १. (क) पद्मपुराण ३०/६७ (ख) हरिवंश पुराण १०/२१४ भा० २ २. (क) कुमारो युवराजेऽश्ववाहके'- शब्दरत्न समन्वय कोष पृ. २६८ (ख) 'पाइअ-सद्द-महण्णवो' पृ० २५३ (ग) अमरकोष काण्ड १, नाट्यवर्ग श्लोक १२ (घ) आप्टेकृत संस्कृत इग्लिश डिक्शनरी पृ० ३६३ ३. (क) आवश्यक नियुक्ति पृ०३९ गा० २२२ ४. कल्पसूत्र में 'भीमं भयभैरवं' आदि पाठ विस्तृत रूप में है। देखिये कल्पसूत्र--१०४ ...... अयले भयभेरवाणं परिसहोवसग्गाणं-खंतिखमे पडिमाणं पालए धीमं अरतिरतिसहे दविए वीरियसंपन्ने देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे ३। ५. 'अचेलयं' के बदले पाठान्तर 'अचेले','अचले' मान कर चूर्णिकार ने अर्थ किया है-'अचले परिसहो वसग्गेहि।' अर्थ होता है-परिसहोपसर्गों के समय अचल।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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