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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
धातीए, मंडावणधातीए, खेल्लावणधातीए', अंकधातीए, अंकातो अंकं साहरिजमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरसमल्लीणे व चंपयपायवे अहाणुपुव्वीए संवड्डति।
७४१. जन्म के बाद श्रमण भगवान् महावीर का लालन-पालन पांच धाय माताओं द्वारा होने लगा। जैसे कि- १. क्षीरधात्री-दूध पिलाने वाली धाय, २. मज्जनधात्री स्नान कराने वाली धाय, ३. मंडनधात्री वस्त्राभूषण पहनाने वाली धाय, ४. क्रीड़ाधात्री-क्रीड़ा कराने वाली धाय,
और ५. अंकधात्री-गोद में खिलाने वाली धाय। वे इस प्रकार एक गोद से दूसरी गोद में संहत होते हुए एवं मणिमण्डित रमणीय आंगन में (खेलते हुए) पर्वतीय गुफा में स्थित (आलीन) चम्पक वृक्ष की तरह कुमार वर्द्धमान क्रमशः सुखपूर्वक बढ़ने लगे। यौवन एवं पाणिग्रहण
७४२. ततो णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणयए विणियत्तबालभावे अप्पुस्सुयाई ५ उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाई कामभोगाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं परियारेमाणे एवं चाए विहरति।
___ ७४२. उसके पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर बाल्यावस्था को पार कर युवावस्था में प्रविष्ट हुए। उनका परिणय (विवाह) सम्पन्न हुआ और वे मनुष्य सम्बन्धी उदार शब्द, रूप, रस, गंध
और स्पर्श से युक्त पांच प्रकार के कामभोगों का उदासीनभाव से उपभोग करते हुए त्यागभावपूर्वक विचरण करने लगे। __विवेचन -यौवन और विवाह प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर की युवावस्था के जीवन का चित्रण है। यहाँ तीन बातों की ओर मुख्यतया संकेत किया गया है-(१) यौवन में प्रवेश,
१. 'खेल्लावणा' के बदले पाठान्तर हैं-खेलावण, खेड्डणण, खेडण। २. 'गिरिकंदरसमल्लीणे' के बदले पाठान्तर हैं-गिरिकंदरसलीणे, गिरिकंदरस्समल्लीगे। ज्ञाताधर्मकथांग में
इसी प्रकार का पाठ मिलता है-'गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे' । वृत्तिकार ने अर्थ किया है'गिरिकंदरेत्ति गिरिनिकुज्जे आलीन व इव चम्पकपादपः सुखं सुखेन वर्धते स्मेति । अर्थात्-गिरिकंदर यानि गिरिनिकुंज में आलीन-आश्रित चंपकवृक्ष की तरह सुखपूर्वक बढ़ रहे थे।' विण्णय परिणय के बदले कल्पसूत्र ९-५४-७६ में इसी से मिलता जुलता पाठ है-से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे 'विण्णायपरिणयमित्ते।' अर्थात्- वह बालक बाल्यभाव से उन्मुक्त होकर परिणय (प्रणय)
का विशेष रूप से ज्ञाता हो गया था। अथवा-परिणय (विवाह) विज्ञात-समाप्त, सम्पन्न हो चुका था। ४. 'विणियत्त' के बदले पाठान्तर है- 'विणियित्त' । अर्थ होता है-विनिवृत्त। ५. 'अप्पुसुयाई' के बदले पाठान्तर हैं—'अप्पुसुग्गाई', 'अप्पुसुत्ताई','अप्पुस्सुत्ताई'। अर्थ प्रायः समान है। ६. 'एवं चाए' के बदले पाठान्तर हैं-'उमंचाए', 'उमंचाते', 'उमच्चाए'। अर्थ समान है—त्यागभाव से।