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________________ ३७४ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध विवेचन-तीन प्रचलित गुणनिष्पन्न नाम-प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के तीन प्रचलित नाम किस कारण से पड़े? इसका उल्लेख है। वर्द्धमान नाम तो माता-पिता के यहाँ धन-धान्य आदि में वृद्धि होने के कारण माता-पिता ने रखा था।' ___ 'श्रमण' नाम प्रचलित होने का कारण यहाँ बताया है- 'सहसम्मुइए'। चूर्णिकार 'सहसम्मुदियाए' पाठ मानकर अर्थ करते हैं। सोभणामतिः सन्मतिः; सन्मत्या सहगतः' -अच्छी बुद्धि या सहज स्वभाविक सन्मति के कारण। इसका अर्थ स्वाभाविक स्मरण-शक्ति के कारण भी होता है। तात्पर्य यह है कि सहज शारीरिक एवं बौद्धिक स्फूर्ति एवं शक्ति से उन्होंने तप आदि आध्यात्मिक साधना के मार्ग में कठोर श्रम किया, एतदर्थ वे 'श्रमण' कहलाए। तीसरा प्रचलित नाम 'महावीर' था, जो देवों के द्वारा रखा गया था। तीनों नाम गुणनिष्पन्न थे। २ । भगवान् के परिवारजनों के नाम ७४४.३ समणस्स णं भगवतो महावीरस्स पिता कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि णामधेजा एवमाहिजंति, तंजहा-सिद्धत्थे ति वा सेजंसे ति वा जसंसे ति वा। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अम्मा वासिट्ठसगोत्ता। तीसे णं तिण्णि णामधेजा एवमाहिजंति, तंजहा-तिसला इ वा विदेहदिण्णा इ वा पियकारिणी ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए सुपासे कासवगोत्तेणं। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेटे भाया णंदिवद्धणे कासवगोत्तेणं। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स जेट्ठा ५ भइणी सुदंसणा कासवगोत्तेणं। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स भज्जा जसोया गोत्तेणं कोडिण्णा।" समणस्स णं भगवतो महावीरस्स धूता कासवगोत्तेणं। तीसे णं दो नामधेजा एवमाहिजंति, तंजहा-अणोज्जा ति वा पियदंसणा ति वा। समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं। तीसे णं दो णामधेजा एवमाहिजंति, तं जहा-सेसवती ति वा जसवती ति वा। १. कल्पसूत्र मूल (देवेन्द्र मुनि सम्पादित) पृ. १४० २. (क) आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २६४ (ख) कल्पसूत्र (देवेन्द्र मुनि सम्पादित) पृ० १४१ ३. सूत्र - ७४४ की तुलना कीजिए कल्पसूत्र सूत्र - १०५ से १०९ तक। आवश्यक चूर्णि पृ० २४४. ४. 'पित्तियए' के बदले पाठान्तर है-पित्तिजे। ५. किसी-किसी- प्रति में 'जेट्ठा भइणी' के बदले 'कणिट्ठा भइणी' पाठ है। ६. 'कासव' के बदले यहाँ 'कासवी' पाठान्तर मिलता है। ७. 'गोत्तेणं कोडिण्णा' के बदले पाठान्तर हैं -कोडिन्ना गोत्तेण, गोयमा गोत्तेणं, से गोयमा गोत्तेणं । अर्थ क्रमशः । यों हैं-कौडिन्यागोत्र से थी, गोत्र से गौतमीया थी, वह गौतमगोत्रीया थी।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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