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________________ ३५ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध चउदसमं अज्झयणं 'अण्णमण्णकिरिया' सत्तिक्कओ अन्योन्यक्रियासप्तकः चतुर्दश अध्ययन : सप्तम सप्तिका अन्योन्यक्रिया-निषेध ७३०. से भिक्खू वा २ अण्णमण्णकिरियं अज्झत्थियं संसेइयं ' णो तं सातिए णोतं नियमे। __७३१. से अण्णमण्णे पाए आमजेज वा पमजेज वा, णोतं सातिए णोतं नियमे, सेसं तं चेव। ७३२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वटेहिं जाव' जएज्जासि ति बेमि। ७३०. साधु या साध्वी की अन्योन्यक्रिया - परस्पर पाद-प्रमार्जनादि समस्त क्रिया, जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। ७३१. साधु या साध्वी (बिना कारण) परस्पर एक दूसरे के चरणों को पोंछकर एक बार या बार-बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी इसे न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे। इस अध्ययन का शेष वर्णन तेरहवें अध्ययन में प्रतिपादित पाठों के समान जानना चाहिए। ७३२. यही (अन्योन्यक्रिया निषेध में स्थिरता ही) उस साधु या साध्वी का समग्र आचार है; जिसके लिए वह समस्त प्रयोजनों, ज्ञानादि एवं पंचसमितियों से युक्त होकर सदैव अहर्निश उसके पालन में प्रयत्नशील रहे। - ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन - अन्योन्यक्रिया-निषेध - इन तीन सूत्रों में शास्त्रकार ने पिछले (तेरहवें) अध्ययन के समान ही समस्त वर्णन करके उन्हीं पाठों को यहाँ समझने का निर्देश किया है। विशेषता इतनी-सी है कि वहाँ 'परक्रिया' शब्द है जबकि इस अध्ययन में 'अन्योन्यक्रिया' है। यह अन्योन्यक्रिया परस्पर दो साधुओं या दो साध्वियों को लेकर होती है। जहाँ दो साधु परस्पर एक दसरे की परिचर्या करें,या दो साध्वियाँ परस्पर एक दसरे की परिचर्या करें. वहीं अन्योन्यक्रिया १. 'संसेइयं' के बदले पाठान्तर हैं – संसेतियं, संसतियं, संसइयं। २. यहाँ 'जाव' शब्द से सव्वटेहिं से 'जएजासि' तक का पाठ सूत्र ३३४ के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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