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त्रयोदश अध्ययन : सूत्र ७१९-७२४
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७१९. यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को प्रासुक शीतल और उष्ण जल से थोड़ा या बहुत बार धोए तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए ।
७२०. यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को किसी विशेष शस्त्र से थोड़ा-सा छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे अथवा किसी विशेष शस्त्र से थोड़ासा या विशेष रूप से छेदन करके मवाद या रक्त निकाले या उसे साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए।
विवचेन - सू० ७१५ से ७२० तक ६ सूत्रों में गृहस्थ से गंडादि से सम्बन्धित परिकर्म रूप परक्रिया कराने का निषेध है। सभी विवेचन पूर्ववत् समझना चाहिए। इस परक्रिया से होने वाली हानियाँ भी पूर्ववत् हैं। निशीथसूत्र में भी इससे मिलता-जुलता पाठ मिलता है । १
'गंडं' आदि शब्दों के अर्थ - प्राकृतकोश के अनुसार गंड शब्द के गालगंड - मालारोग, गांठ, ग्रन्थी, फोड़ा, स्फोटक आदि अर्थ होते हैं । यहाँ प्रसंगवश गंड शब्द के अर्थ गाँठ, ग्रन्थी, फोड़ा या कंठमाला रोग है । 'अरइयं' (अरइ) के प्राकृतकोश में अर, अर्श, मस्सा, बवासीर आदि अर्थ मिलते हैं। 'पुलयं' (पुल) का अर्थ छोटा फोड़ा या फुंसी होता है । भगंदलं का अर्थ भगंदर है । अच्छिदणं - एक बार या थोड़ा-सा छेदन, विच्छिदणं - बहुत बार या बार-बार अथवा अच्छी तरह छेदन करना । २
अंगपरिकर्म रूप परक्रिया - निषेध
७२१. से से परो कायातो सेयं वा जल्लं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे ।
७२२. से से परो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे ।
(क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१६ ।
(ख) निशीथसूत्र उ. ३ चूर्णि पृ. २१५ - २१७ – 'जे भिक्खू अप्पणो कायंसि गंडं वा अरतियं वा असिं वा पिलगं वा भगंदलं वा अन्नतरेणं तिक्खेणं सत्थाजाएणं अच्छिंदति वा विच्छिंदति वा, - पूयं वा सोणियं वा णीहरेति वा विसोहेति वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेति वा पधोवेति वा ------- आलेवणजाएणं आलिंपइ वा विलिंपइ वा तेल्लेण वा घएण वा raणीएण वा अब्भंगेति वा मक्खेति वा 'धूवणजाएणं धूवेति वा पधूवेति वा । (क) पाइअ - सद्द - महण्णवो ।
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(ख) निशीथसूत्र उ ३ चूर्णि पृ. २१५-२१७ अरतियं— अरतिओ जं ण पच्चति । विच्छिदणं........।"
(ग) ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जंति । ३. 'कायातो' के बदले ' कायंसि' पाठान्तर है ।
१.
२.
"गंड - -गंडमाला, जं च अण्णं सुपायगं तं गंडं । एक्कसि ईषद् वा अच्छिदणं, बहुवारं सुट्टु वा छिंदणं
-स्थानांग स्थान १०
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