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________________ सप्तम अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ६०८-६११ करेंगे वे भी उतने ही समय तक उतने ही क्षेत्र में ठहरेंगे, उसके पश्चात् वे और हम विहार कर देंगे । २८३ ६०९. अवग्रह के अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर फिर वह साधु क्या करे? वहाँ (निवासित साधु के पास) कोई साधर्मिक, साम्भोगिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में जा जाएँ तो वह साधु स्वयं अपने द्वारा गवेषणा करके लाये हुए अशनादि चतुर्विध आहार को उन साधर्मिक, सांभोगिक एवं समनोज्ञ साधुओं को उपनिमंत्रित करे, किन्तु अन्य साधु द्वारा या अन्य रुग्णादि साधु के लिए लाए आहारादि को लेकर उन्हें उपनिमंत्रित न करे । ६१०. पथिकशाला आदि अवग्रह को अनुज्ञापूर्वक ग्रहण कर लेने पर, फिर वह साधु क्या करे? यदि वहाँ (निवासित साधु के पास) कुछ अन्य साम्भोगिक, साधर्मिक एवं समनोज्ञ साधु अतिथि रूप में जा जाएँ तो जो स्वयं गवेषणा करके लाए हुए पीठ (चौकी), फलक, ( पट्टा) शय्यासंस्तारक (घास) आदि हों, उन्हें (अन्य साम्भोगिक साधर्मिक समनोज्ञ साधुओं को) उन वस्तुओं के लिए आमंत्रित करे, किन्तु जो दूसरे के द्वारा या रुग्णादि अन्य साधु के लिये लाये हुए पीठ, फलक या शय्यासंस्तारक हों, उनको लेने के लिए आमंत्रित न करे । ६११. उस धर्मशाला आदि को अवग्रहपूर्वक ग्रहण कर लेने के बाद साधु क्या करे? जो वहाँ आसपास में गृहस्थ या गृहस्थ के पुत्र आदि हैं, उनसे कार्यवश सूई, कैंची, कानकुरेदनी, नहरनी - आदि अपने स्वयं के लिए कोई साधु प्रातिहारिक रूप से याचना करके लाया हो तो वह उन चीजों को परस्पर एक दूसरे साधु को न दे-ले । अथवा वह दूसरे साधु को वे चीजें न सौंपे। उन वस्तुओं का यथायोग्य कार्य हो जाने पर वह उन प्रातिहारिक चीजों को लेकर उस गृहस्थ यहाँ जाए और लम्बा हाथ करके उन चीजों को भूमि पर रख कर गृहस्थ से कहे- —यह तुम्हारा अमुक पदार्थ है, यह अमुक है, इसे संभाल लो, देख लो। परन्तु उन सूई आदि वस्तुओं को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ पर रख कर न सौंपे। विवेचन—अवग्रहयाचना-विधि और याचना के पश्चात् — सूत्र ६०८ से ६११ तक में अवग्रहयाचना से पूर्व और पश्चात् की कर्त्तव्य विधि बताई गई है। इसमें निम्नोक्त पहलुओं पर कर्त्तव्य निर्देश किया गया है (१) आवासीय स्थान के क्षेत्र और निवार. काल की सीमा, अवग्रह की याचनाविधि । (२) अवग्रह-गृहीत स्थान में साधर्मिक, सम्भोगिक, समनोज्ञ साधु आ जाएँ तो उन्हें स्वयाचित आहारादि में से लेने की मनुहार करे, पर याचित में से नहीं । स्व- याचित आहार भी यदि रुग्णादि साधु के लिए याचना करके लाया हो तो उसके लिए भी नहीं । (३) अवग्रह- गृहीत स्थान में अन्य साम्भोगिक साधर्मिक समनोज्ञ साधु आ जाएँ तो उन्हें स्व- याचित पीठ, फलक, शय्या - संस्तारक आदि में से लेने की मनुहार करे, पर याचित पीठादि
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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