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चतुर्थ अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र ५३३-५४८
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(५) गायों, बैलों आदि को देखकर यह गाय दूहने योग्य है, यह बैल बधिया करने योग्य है, आदि सावध भाषा न बोल कर निरवद्य गुणसूचक भाषा-प्रयोग करे।
(६) विशाल वृक्षों को देखकर ये काटने योग्य हैं या इनकी अमुक वस्तु बनाई जा सकती है, आदि हिंसा-प्रेरक सावध भाषा का प्रयोग न करे।
(७) वनफलों को देखकर ये खाने योग्य, तोड़ने योग्य या टुकड़े करने योग्य आदि हैं, ऐसी सावध भाषा न बोले।
(८) खेतों में लहलहाते धान्य के पौधे को देखकर ये पक गए हैं, हरे हैं, काटने, भुनने योग्य हैं आदि सावद्यभाषा का प्रयोग न करे, किन्तु अंकुरित, विकसित, स्थिर हैं आदि निरवद्य गुणसूचक भाषा-प्रयोग करना चाहिए।
इन आठ प्रकार की दृश्यमान वस्तुओं पर से शास्त्रकार ने ध्वनित कर दिया है कि सारे संसार की जो भी वस्तुएँ साधु के दृष्टिपथ में आएँ उनके विषय में कुछ कहते या अपना अभिप्राय सूचित करते समय बहुत ही सावधानी तथा विवेक के साथ परिणाम का विचार करके निरवद्य निर्दोष, गुणसूचक, जीवोपघात से रहित, हृदय को आघात न पहुँचाने वाली भाषा का प्रयोग करे, किन्तु कभी किसी भी स्थिति में सावध, सदोष, चित्तविघातक, जीवोपघातक आदि भाषा का प्रयोग न करे।
___ 'गंडी' आदि पदों के अर्थ - 'गंडी' के दो अर्थ बताए गए हैं – गण्ड (कण्ठ) माला के रोग से ग्रस्त अथवा जिसके पैर और पिण्डलियों में शून्यता आ गई हो, तेयंसी - शौर्यवान । वच्चंसी-दीप्तिमान। पडिरूवं-गुण में प्रतिरूप- तुल्य । पासादियं- प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला। उवक्खडियं- मसाले आदि देकर संस्कारयुक्त पकाया हुआ भोजन । भदंग - प्रधान, मुख्य। ऊसढं- उत्कृष्ट या उच्छित-वर्ण-गन्धादि से युक्त। परिवढकायं-पष्ट शरीर वाले। पमेतिले - गाढी चर्बी (मेद) वाला। वज्झ- वध्य या वहने योग्य। पादिमपकाने योग्य या देवता आदि को चढ़ाने योग्य । दोज्झा - दूहने योग्य। दम्मा- दमन (बधिया) करने योग्य। गोरहगा - हल में जोतने योग्य, वाहिमा – हल, धुरा आदि वहन करने में समर्थ । जुवं गवेति – युवा बैल। 'महव्वए' या 'महल्लए'- बड़ा। उदगदोणिजोग्गा - जल का कुण्ड बनाने योग्य, चंगवेर - काष्ठमयी पात्री। णंगल - हल। कुलिय- खेत में घास काटने का छोटा काष्ठ का उपकरण। जंतलट्ठी- कोल्हू या कोल्हू का लट्ठ। णाभिगाड़ी के पहिए का मध्य भाग। गंडी- गंडिक अहरन या काष्ठफलक, महालया - अत्यन्त विस्तृत वृक्ष । पयातसाला (हा)-जिनके शाखाएँ फूट गई हैं, विडिमसाला (हा)-जिनमें प्रशाखाएं फूट गई हैं। पायखजाइं-पराल आदि में कृत्रिम ढंग से पका कर खाने योग्य। वेलोतियाई - अत्यन्त पकने से तोड़ लेने योग्य। टालाई - कोमल फल, जिनमें गुठली न आई हो,। वेहियाई- दो टुकड़े करने योग्य, वेध्य । नीलियाओ- हरी, कच्ची या अपक्व।असंथडा१. आचारांग वृत्ति पत्रांक ३८९, ३९० के आधार पर २. (क) वही, पत्रांक ३८९ के आधार पर , (ख) दशवै० ३/१७, ५४, ५५