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________________ २३० आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध फलों का अतिभार धारण करने में असमर्थ । भूतरूवा- पूर्वरूप-कोमल। छवीया–फलियाँ, छीमियाँ । लाइमा–लाई या मुडी आदि बनाने योग्य अथवा काटने योग्य । भज्जिमा-भंजनेसेकने योग्य, बहुखज्जा ( पहुखज्जा)- चिउड़ा बनाकर खाने योग्य। वनस्पति की रूढ आदि सात अवस्थाएँ भाषणीय- औषधियों के विषय में साधु को प्रयोजनवश कुछ कहना हो तो वनस्पति की इन सात अवस्थाओं में से किसी भी एक अवस्था के रूप में कह सकता है। (१) रूढ़ा- बीज बोने के बाद अंकुर फूटना, (२) बहुसंभूता- बीजपत्र का हरा और विकसित पत्ती के रूप में हो जाना, (३) स्थिरा- उपघात से मुक्त होकर बीजांकुर का स्थिर हो जाना, (४) उत्सृता-संवर्धित स्तम्भ के रूप में आगे बढ़ना, (५) गर्भिता- आरोह पूर्ण होकर भट्टा, सिरा या बाली न निकलने तक की अवस्था, (६) प्रसूता- भुट्टा निकलने पर, (७) ससारा- दाने पड़ जाने पर।२ शब्दादि-विषयक-भाषा-विवेक ५४१. से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाइं सदाइं सुणेजा तहा वि ताइंणो एवं वदेजा, तंजहा- सुसद्दे ति वा, दुसद्दे ति वा। एतप्पगारं [भासं] सावजं जाव णो भासेज्जा। ५५०. [से भिक्खू वा २ जहा वेगतियाइं सद्दाइं सुणेजा] तहा वि ताइं एवं वदेज्जा तंजहा–सुसदं सुसद्दे ति वा, दुसहं दुसद्दे ति वा। एतप्पगारं[भासं]असावजंजाव भासेजा। __ एवं रूवाइं किण्हे ति वा ५, गंधाई सुब्भिगंधे ति वा २, रसाइं तित्ताणि वा ५, फासाई कक्खडाणि वा ८।५ १. (क) आचारांग चूर्णि मूलपाठ टिप्पणी पृष्ठ १९५ (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३८९, ३९०; ३९१ (ग) पाइअ-सद्द-महण्णवो (घ) देखिए - दशवैकालिक सूत्र अ०७, गा० ११, ४१, ४२, तथा २२ से ३५ तक (अ) अगस्त्य. चूर्णि पृ. १७० से १७२, (ब) जिन. चूर्णि पृ. २५३ से २५६ (स) हारि. टीका पत्र २१७ से २१९ तक २. (क) दशवै. अ. ७ गा. ३५ जिन. चूर्णि पृ. २५७ (ब) अग. चूर्णि. पृ. १७३ ३. से भिक्खू आदि पंक्ति का तात्पर्य वृत्तिकार के शब्दों में - सभिक्षुः यद्यप्येतान् शब्दान् श्रुणुयात् तथापि नैवं वदेत ।' अर्थात् वह भिक्षु यद्यपि इन शब्दों को सुने तथापि इस प्रकार न बोले। ४. 'ससह ससहेति' आदि का तात्पर्य वत्तिकार के शब्दों में –'ससह ति शोभनं शब्दं शोभनमेव ब्रयात अशोभनं त्वशोभनमिति । एवं रूपादिसूत्रमपि नेयम्।– शोभनीय शब्द को शोभन और अशोभनीय को अशोभन कहे। इसी प्रकार रूपादि विषयक सूत्रों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए। ५. इस सूत्र में ५ २, ५,८ के अंक सम्बन्धित भेद-प्रभेद के सूचक हैं। विवेचन देखें पृष्ठ २३१ पर।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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