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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
५४७. साधु या साध्वी बहुत मात्रा में पैदा हुई औषधियों (गेहूँ, चावल आदि के लहलहाते पौधों) को देखकर यों न कहे, कि ये पक गई हैं, या ये अभी कच्ची या हरी हैं, ये छवि (फली) वाली हैं, ये अब काटने योग्य हैं, ये भूनने या सेकने योग्य हैं, इनमें बहुत-सी खाने योग्य हैं, या चिवड़ा बनाकर खाने योग्य हैं। इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा साधु न बोले।
५४८. साधु या साध्वी बहुत मात्रा में पैदा हुई औषधियों को देखकर (प्रयोजनवश) इस प्रकार कह सकता है, कि इनमें बीज अंकुरित हो गए हैं, ये अब जम गई हैं, सुविकसित या निष्पन्नप्रायः हो गई हैं, या अब ये स्थिर (उपघातादि से मुक्त) हो गई हैं, ये ऊपर उठ गई हैं, ये भुट्टों, सिरों या बालियों से रहित हैं, अब ये भुट्टों आदि से युक्त हैं, या धान्य-कणयुक्त हैं। साधु या साध्वी इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीवोपघात से रहित भाषा विचारपूर्वक बोले।
_ विवेचन - दृश्यमान वस्तुओं को देखकर निरवद्य भाषा बोले, सावद्य नहीं - सू० ५३३ से ५४८ तक में आँखों से दृश्यमान वस्तुओं के विविध रूपों को देखकर बोलने का विवेक बताया है। साधु-साध्वी संयमी हैं, पूर्ण अहिंसाव्रती हैं और भाषा-समिति-पालक हैं, उन्हें सांसारिक लोगों की तरह ऐसी भाषा नहीं बोलनी चाहिए, जिससे दूसरे व्यक्ति हिंसादि पाप में प्रवृत्त हों, जीवों को पीड़ा, भीति एवं मृत्यु का दुःख प्राप्त हो, छेदन-भेदन करने की प्रेरणा मिले। तात्पर्य यह है कि किसी भी वस्तु को देखकर बोलने से पहले उसके भावी परिणाम को तौलना चाहिए।
एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के किसी भी जीव की विराधना उसके बोलने से होती हो तो वैसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन सोलह सूत्रों में निम्नोक्त दृश्यमान वस्तुओं को देखकर सावद्य आदि भाषा बोलने का निषेध और निरवद्य भाषा-प्रयोग का विधान है।
(१) गण्डी, कुष्ठी आदि को देखकर गण्डी, कुष्ठी आदि चित्तोपघातक शब्दों का प्रयोग न करे, किन्तु सभ्य, मधुर गुणसूचक भाषा का प्रयोग करे।
(२) क्यारियाँ, खाइयाँ आदि देखकर 'अच्छी बनी हैं' आदि सावध भाषा का प्रयोग न करे, किन्तु निरवद्य, गुणसूचक भाषा-प्रयोग करे।
(३) मसालों आदि से सुसंस्कृत भोजन को देखकर बहुत बढ़िया बना है, आदि सावध व स्वाद-लोलुपता सूचक भाषा का प्रयोग न करे, किन्तु आरम्भजनित है, आदि निरवद्य - यथार्थ भाषा का प्रयोग करे।
(४) परिपुष्ट शरीर वाले पशु-पक्षियों या मनुष्यों को देखकर यह स्थूल है, वध्य है, चर्बी वाला है या पकाने योग्य है आदि असभ्य सावद्यभाषा का प्रयोग न करे, किन्तु सौम्य, निरवद्य, गुणसूचक-शब्द प्रयोग करे।