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________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र ५२२-५२९ २१५ इस समग्र चर्चा का सार यह लगता है कि पुरुषवेषधारी स्त्री को पुरुष न कहकर 'पुरुषवेषधारी' कहना चाहिए। इसी प्रकार स्त्री वेषधारी को स्त्री न कहकर 'स्त्री-वेषधारी' कहना चाहिए; ताकि शंकित व असत्य-दोष से भाषा दूषित न हो। एवं वा चेयं, अण्णं वा चेयं का तात्पर्य वृत्तिकार के अनुसार है - यह ऐसा है, या यह दूसरे प्रकार का है...। किन्तु चूर्णिकार इसका तात्पर्य निषेधात्मक बताते हैं - यह ऐसा ही है, इस प्रकार संदिग्ध अथवा यह अन्यथा (दूसरी तरह का) है, इस प्रकार का असंदिग्धवचन नहीं बोलना चाहिए। चार प्रकार की भाषा : विहित-अविहित ५२२. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेजा चत्तारि भासज्जायाइं, तंजहा- सच्चेमेगं २ पढमं भासजातं, बीयं मोसं, ततियं सच्चामोसं, जं व सच्चं व मोसं व सच्चामोसं णाम तं चउत्थे भासज्जातं। ___ से बेमि- जे य अतीता जे य पडुप्पण्णा जे य अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एताणि चेव चत्तारि भासजाताई भासिंसु वा भासिंति वा भासिस्संति वा, पण्णविंसु वा सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचइयाई ५ विप्परिणामधम्माइं भवंति त्ति अक्खाताई। ५२३. से भिक्खू वा २ [से जं पुण जाणेजा-] पुव्वं भासा अभासा, भासिजमाणी भासा भासा, भासासमयवीइकंतं च णं भासिता भासा अभासा। १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३८६, (ख) आचा, चूर्णि मू. पा. पृ. १९० २. 'सच्चमेगं' के बदले पाठान्तर है - सच्चमेतं , सच्चमेयं, सच्चमेमं। 'पण्णविंसु वा' के आगे ३ का अंक शेष (पण्णवेंति वा पण्णविस्संति वा) पाठ का सूचक है। 'रसमंताणि फासमंताणि' के बदले पाठान्तर है - 'रसवंताणि फासवंताणि' । 'चयोवचइयाई' के बदले चूर्णिकार 'चयोवचयाई' पाठान्तर मानकर व्याख्या करते हैं -चयोवचयाई अनित्यो (शब्द) - वैशेषिकाः, वैदिकाः - नित्यः शब्दः- यथा वायुर्वीजनादिभिरभिव्यज्यते, एवं शब्दः, ण च एवमारहतानां, यथा पट: चीयते अवचीयते च, एवं विप्परिणामसभावाणि, 'ते चेव णंते भंते! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा वि पोग्गाला सुब्भिसद्दत्ताए परिणंमति।' अर्थात् - वैशेषिक कहते हैं - शब्द अनित्य है, वैदिक कहते हैं -शब्द नित्य है, जैसे वायु पंखे आदि के द्वारा अभिव्यक्त होती है, वैसे ही शब्द है। आर्हतमतानुसार ऐसा नहीं है, यहाँ शब्द आदि पुद्गल हैं, जो परिणामी हैं। जैसे वस्त्र का चय-अपचय होता है, इसी प्रकार सभी पुद्गल परिणमनस्वभाव वाले होते हैं। जैसे कि शास्त्र में कहा है -"ते चेव भंते!" ये सुशब्द के पुद्गल दुःशब्द के रूप में परिणत होते हैं, दुःशब्द के पदगल भी सशब्द के रूप में परिणत होते हैं।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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