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________________ २०६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध महतिमहालयंसि उदयंसि कायं विओसेज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेजा अप्पुस्सुए ' जाव समाहीए, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा। ५१६. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेजा, अंतरा से विहं सिया, से ज्जं पुण विहं जाणेजा, इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवकरणपडियाए संपडिया (55) गच्छेज्जा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गं चेव गच्छेजा जाव समाहीए।ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा। ५१७. से भिक्खूवा २ गामाणुगामं दूइज्जेजा, अंतरा से आमोसगा संपिडया-(ss) गच्छेज्जा, ते णं आमोसगा एवं वदेजा-आउसंतो समणा ! आहर एयं वर्थ वा ३ ४, देहि, णिक्खिवाहि, तं णो देजा, णिक्खिवेजा, णो वंदिय जाएजा, णो अंजलिं कट्ट जाएजा, णो कलुणपडियाए जाएजा, धम्मियाए जायणाए जाएजा, तुसिणीयभावेण वा (उवेहेजा)। ५१८. ते णं आमोसगा सयं करणिजं ५ ति कट्ट अक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति वा, वत्थं वा ४ अच्छिदेज वा जाव परिट्ठवेज वा, तंणो गामसंसारियं कुजा, णो रायसंसारियं कुजा, णो परं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो गाहावती! एते खलु आमोसगा उवकरण-पडियाए सयं करणिज्जं ति कट्ट अक्कोसंति वा जाव परिट्ठवेंति वा।एतप्पगारं मणं वा वई वा णो पुरतो कट्ट विहरेज्जा। अप्पुस्सुए जाव समाहीए ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा। ५१९. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वटेहिं समिते सहिते सदा जएजासि त्ति बेमि। ५१५. ग्रामनुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में मदोन्मत्त साँड, विषैला साँप, यावत् चीते, आदि हिंसक पशुओं को सम्मुख-पथ से आते देखकर उनसे भयभीत होकर १. यहाँ 'जाव' से 'अप्पुस्सुए' से 'समाहीए' तक का समग्र पाठ ४८२ सूत्रवत् समझें। २. जाव शब्द से यहाँ 'गच्छेज्जा' से लेकर समाहीए तक का समग्र पाठ सू०५१५ के अनुसार समझें। ३. 'वत्थं वा' के आगे '४' का चिह्न सूत्र ४७१ के अनुसार शेष तीन उपकरणों (पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पादपुंछणं वा) का सूचक है। ४. 'धम्मियाए जायणाए' की व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में 'धम्मियजायणा थेराणं तुब्भविहेहिं चेव दिण्णाइं, जिणकप्पिओ तुसिणीओ चेव।' अर्थात्-धार्मिक याचना स्थविरकल्पिक मुनियों की ऐसी हो—'तुम जैसों ने ही हमें (ये उपकरण) दिए हैं। जिनकल्पिक तो मौन ही रहें।' ५. 'सयं करणिजं' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-सयं करणिज ति जण्हं रुच्चति, तं करेंति, अक्कोसादी।' स्वयं करणीय का भावार्थ है-जो उन्हें अच्छा लगता है, वह वे करते हैं, आक्रोध, वध आदि। जाव शब्द से यहाँ 'अच्छिंदेज वा' से लेकर 'परिवेज वा' तक का समग्र पाठ सूत्र ४७१ के अनुसार समझें। ७. जाव शब्द से यहाँ 'अक्कोसंति' से लेकर 'उद्दवेंति' तक का सारा पाठ सू० ४२२ के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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