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________________ १९२ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ४९६. अह पुणेवं जाणेजा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए। ततो संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिवेण वा काएण दगतीरए चिट्ठेजा। ४९७. से भिक्खूवा २ उदउल्लं वा कायं ससणिद्धं वा कायंणो आमज्जेज वा पमज्जेज वा[0]। अह पुणेवं जाणेजा-विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे। तहप्पगारं कायं आमजेज वा जाव पयावेज वा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा। ४९३. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में जंघा-प्रमाण (जंघा से पार करने योग्य) जल (जलाशय या नदी) पड़ता हो तो उसे पार करने के लिए वह पहले सिर सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैर तक प्रमार्जन करे। इस प्रकार सिर से पैर तक का प्रमार्जन करके वह एक पैर को जल में और एक पैर को स्थल में रखकर यतनापूर्वक जंघा से तरणीय जल को, भगवान् के द्वारा कथित ईर्यासमिति की विधि के अनुसार पार करे। ४९४ साध या साध्वी जंघा से तरणीय जल को शास्त्रोक्तविधि के अनसार पार करते हए हाथ से हाथ का, पैर से पैर का तथा शरीर के विविध अवयवों का परस्पर स्पर्श न करे। इस प्रकार वह शरीर के विविध अंगों का परस्पर स्पर्श न करते हुए भगवान् द्वारा प्रतिपादित ईर्यासमिति की विधि के अनुसार यतनापूर्वक उस जंघातरणीय जल को पार करे। ४९५. साधु या साध्वी जंघा-प्रमाण जल में शास्त्रोक्तविधि के अनुसार चलते हुए शारीरिक सुख-शान्ति की अपेक्षा से या दाह उपशान्त करने के लिए गहरे और विस्तृत जल में प्रवेश न करे और जब उसे यह अनुभव होने लगे कि मैं उपकरणादि-सहित जल से पार नहीं हो सकता, तो वह उनका त्याग कर दे, शरीर-उपकरण आदि के ऊपर से ममता का विसर्जन कर दे। उसके पश्चात् वह यतनापूर्वक शास्त्रोक्तविधि से उस जंघा-प्रमाण जल को पार करे। ४९६. यदि वह यह जाने कि मैं उपधि-सहित ही जल से पार हो सकता हूँ तो वह उपकरण सहित पार हो जाए। परन्तु किनारे पर आने के बाद जब तक उसके शरीर से पानी की बूंद टपकती हो, जब तक उसका शरीर जरा-सा भी भीगा है, तब तक वह जल (नदी) के किनारे ही खड़ा रहे। ४९७. वह साधु या साध्वी जल टपकते हुए या जल से भीगे हुए शरीर को एक बार या बार-बार हाथ से स्पर्श न करे, न उसे एक या अधिक बार घिसे, न उस पर मालिश करे, और न ही उबटन की तरह उस शरीर से मैल उतारे। वह भीगे हुए शरीर और उपधि को सुखाने के लिए धूप से थोड़ा या अधिक गर्म भी न करे। १. [0] इस चिह्न से 'पमज्जेज वा' से लेकर 'दुइजेजा' तक का समग्र पाठ समझें। २. जाव शब्द से यहाँ आमज्जेज वा' से लेकर 'पयावेज वा' तक का पाठ ग्रहण सूचित किया है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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