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________________ १९१ तृतीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र ४९३-४९७ ईया-समितिविवेक ४९२. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो परेहिं सद्धिं परिजविय २ गामाणुगामं दूइजेजा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा। ४९२. साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहस्थों के साथ बहुत अधिक वार्तालाप करते न चलें, किन्तु ईर्यासमिति का यथाविधि पालन करते हुए ग्रामानुग्राम विहार करें। विवेचन-विहार के समय ईर्यासमिति का ध्यान रहे —इस सूत्र में मुनि को विहार करते हुए गृहस्थों के साथ लम्बी-चौड़ी गप्पें मारते हुए चलने का निषेध किया है, क्योंकि बातें करने से ध्यान ईर्या से हट जाता है, ईर्याशुद्धि ठीक तरह से नहीं हो सकती, जीवहिंसा की संभावना है। परिजविय' का अर्थ वृत्तिकार ने किया है - अत्यधिक वार्तालाप करता-करता। २ जंघाप्रमाण-जल-संतरण-विधि ४९३. से भिक्खू वा.२ गामाणुगामं दूइज्जेजा, अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमजेजा, से पुव्वामेव [ससीसोवरियं कायं पाए य] पमजेत्ता एगं पादं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं ३ रीएजा। ४९४. से भिक्खू वा २ जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे णो हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संज़यामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीएज्जा। ४९५. से भिक्खू वा २ जंघासंतारिमे उदए अहारियं ५ रीयमाणे णो सायपडियाए६ णो परिदाहपडियाए महतिमहालयंति उदगंसि कायं विओसेजा। ततो संजयामेव जंघासंतारिमेव उदए अहारियं रीएज्जा। १. 'परेहिं सद्धिं परिजविय' का आशय चूर्णिकार ने इस प्रकार व्यक्त किया है-परे-गिहत्था अण्णउत्थिता वा, परिजविय वू पुं करेंतो, जातिधम्मं कहेंतो, संजम-आयविराहणा तेणऐहि वा घेप्पेज्जा।" अर्थात् - पर यानी गृहस्थ या अन्यतीर्थिक। उनके साथ बकवास करने से अथवा जाति-धर्म कहने से। ऐसा करने से संयम और आत्मा की विराधना होती है, चोरों के द्वारा भी पकड़ लिया जा सकता है। २. आचारांग वृति पत्रांक ३८० । 'अहारियं रीएज्जा' का भावार्थ वृत्तिकार के शब्दों में यों है—'अहारियं एज्जा'त्ति यथा ऋजु भवति तथा गच्छेत् नार्दवितर्द विकारं वा कुर्वन् गच्छेत्। -अर्थात्-अहारियं का भावार्थ है-जैसे ऋजु (सरल) हो, वैसे चले, आड़ा टेढ़ा विकृत करता हुआ न चले। ४. यहाँ जाव शब्द सू० ४८७ अनुसार हत्थं से लेकर आणासायमाणे तक के पाठ का सूचक है। ५. इसके स्थान पर पाठान्तर हैं - आहारीयं, अहारीयं, अहारीयमाणे। ६. सायपडियाए के स्थान पर 'सायवडियाए' पाठान्तर है। ७. वियोसेज्जा के स्थान पर वितोसेज्जा पाठान्तर है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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