SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध जब वह यह जान ले कि अब मेरा शरीर पूरी तरह सूख गया है, उस पर जल की बूँद या जल का लेप भी नहीं रहा है, तभी अपने हाथ से उस ( प्रकार के सूखे हुए) शरीर का स्पर्श करे, उसे सहलाए, उसे रगड़े, मर्दन करे यावत् धूप में खड़ा रहकर उसे थोड़ा या अधिक गर्म भी करे । तदनन्तर संयमी साधु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे । १९० - विवेचन - नौकारोहण : धर्मसंकट और सहिष्णुता – पिछले आठ सूत्रों में नौकारोहण करने के पश्चात् आने वाले धर्मसंकट और उससे पार होने की विधि का वर्णन किया गया है। - नौकारूढ़ मुनि पर आने वाले धर्मसंकट इस प्रकार के हो सकते हैं. (१) नौकारूढ़ मुनि को मुनिधर्मोचित मर्यादा से विरुद्ध कार्य के लिए कहें, (२) मौन रहने पर वे उसे भला-बुरा कह कर पानी में फेंक देने का विचार करें, (३) मुनि उन्हें वैसा न करने को कुछ कहेपहले ही वे उसे जबरन पकड़ कर जल में फेंक दें। - समझाए उससे इन संकटों के समय मुनि को क्या करना चाहिए इसका विवेक शास्त्रकार ने इस प्रकार किया (१) मुनि, धर्म-विरुद्ध कार्यों को स्वीकार न करे, चुपचाप बैठा रहे, (२) जल में फेंक देने की बात कानों में पड़ते ही मुनि अपने सारे शरीर पर वस्त्र लपेटने की क्रिया करे, (३) मुनि के मना करने और समझाने पर भी जबर्दस्ती उसे जल में फेंक दें तो वह मन में जल समाधि लेकर शीघ्र ही इस कष्ट से 'छुटकारा पाने का न तो हर्ष करे, न ही डूबने का दुःख करे, न ही फेंकने वालों के प्रति मन में दुर्भावना लाए, न मारने-पीटने के लिए उद्यत हो । समाधिपूर्वक जल में प्रवेश करे । - प्रवेश के बाद मुनि क्या करे क्या न करे ? इसकी विधि सूत्र ४८७ से ४९१ तक पाँच सूत्रों में भलीभाँति बता दी है। अहिंसा, संयम, ईर्यापथप्रतिक्रमण और आत्मसाधना की दृष्टि से यह विधि-विधान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । १ - 'पज्जेहि' आदि पदों के अर्थ पज्जेहि पानी पिलाओ, परिण्णं प्ररिज्ञा (निवेदन) या प्रार्थना, 'भण्डभारिए'- • निर्जीव वस्तुओं की तरह निश्चेष्ट होने से भारभूत है। उव्वेढेज – निरुपयोगी वस्त्रों को खोलकर निकाल दे, णिव्वेढेज्ज – उपयोगी वस्त्रों को शरीर पर अच्छी तरह बाँध कर लपेट ले, उप्फेस वा करेज्जा - सिर पर कपड़े लपेट ले। (यह विधि स्थविरकल्पी) के लिए है, जिनकल्पी के लिए उप्फेसीकरण का विधान है, यानी वह सिर आदि को की तरह सिकोड़ कर नाटा कर ले। अभिक्कंतकूरकम्मा - क्रूर कर्म के लिए उद्यत, बलसा - बलपूर्वक, विसोहेज्ज - त्याग दे, संलिहेज्ज णिलिहेज- • न थोड़ा-सा घिसे, न अधिक - घिसे । २ - - १. आचारांग वृत्ति पत्रांक ३७९ के आधार पर २. (क) वही, पत्रांक ३७९ - ३८० (ख) आचारांग चूर्णि मूलपाठ टिप्पण पृ० १७८ - १७९ - १८० (ग) पाइअ - सद्द - महण्णवो
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy