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आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
0 ईर्या-अध्ययन के तीन उद्देशक हैं । प्रथम उद्देशक में वर्षाकाल में एक स्थान में निवास, तथा
ऋतुबद्धकाल में विहार के गुण-दोषों का निरूपण है। . द्वितीय उद्देशक में नौकारोहण-यतना, थोड़े पानी में चलने की यतना तथा अन्य ईर्या से
सम्बन्धित वर्णन है। 0 तृतीय उद्देशक में मार्ग में गमन के समय घटित होने वाली समस्याओं के सम्बन्ध में उचित
मार्ग-दर्शन प्रतिपादित है। 0 सूत्र ४६४ से प्रारम्भ होकर सूत्र ५१९ पर तृतीय ईर्याध्ययन समाप्त होता है।
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१. (क) आचा० टीका पत्र ३७४
(ख) उत्तराध्ययन अ० २४, गा० ४, ५, ६, ७,८ २. (क) आचारांग नियुक्ति गा० ३११, ३१२
(ख) टीका पत्र ३७५