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________________ .१७१ तईयं अज्झयणं 'इरिया' पढमो उद्देसओ ईर्याः तृतीय अध्ययनः प्रथम उद्देशक वर्षावास-विहारचर्या ४६४. अब्भुवगते खलु वासावासे अभिपवुड, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया २ अहुणुब्भिण्णा अंतराने से मग्गा बहुपाणा बहुबीया जाव * संताणगा, अणण्णोकंता पंथा, णो विण्णाया मग्गा, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूइजेजा, ततो संजयामेव वासावासं उवल्लि एज्जा। ४६५. से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेजा गामं वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गाम वा जाव रायहाणिसि वा णो महती विहारभूमी, णो महती वियारभूमी, णो सुलभे १. निशीथचूर्णि के दशवें उद्देशक पृ०११२ में इसी विधि का वर्णन चूर्णिकार ने किया है—'आचारांगस्य बितियसुयक्खंधे-जो विधी भणितो-सो य इमो-अब्भुवगते खलु वासवासे-वासावासं उविलिइज्जा।"- इसका अर्थ मूल पाठ के अनुसार है। २. चूर्णिकार ने 'बीया अहणुब्भिण्णा' का अर्थ किया है-'अंकुरिता - इत्यर्थः - अर्थात् बीज अंकुरित हो जाते हैं। ३. अंतरा से मग्गा - आदि का भावार्थ चूर्णि में यों है - अन्तर त्ति वरिसारतो जहा 'अंतरघणसोमली भगवं' अन्तरालं वा अंतो। अन्तरा का अर्थ - वर्षाऋतु में जैसे अन्तर घन श्यामल भगवान् मेघ छाये रहते हैं, अथवा अन्तराल में - बीज में, अन्दर - में। ४. यहाँ जाव शब्द से 'बहुबीया' से लेकर 'संताणगा' तक का पाठ है। ५. अणण्णोकंता की व्याख्या चूर्णिकार ने इस प्रकार दी है- अणण्णोकंता लोएणं चरगादीहि वा अक्कंता वि अणक्वंतसरिसा। अर्थात् -'अनन्याक्रान्त' का भावार्थ है - जनता से, वा चरक आदि परिव्राजक द्वारा आक्रान्त मार्ग भी अनन्यक्रान्त सदृश प्रतीत होते हैं। ६. णो महती विहारभूमि - आदि पाठ की व्याख्या चूर्णिकार के अनुसार -'वियारभूमी काइयाभूमी णत्थि, विहारभूमि-सज्झायभूमी णत्थि। पीढा कट्ठमया, इहरहा वरिसारित्ते णिसिज्जा कुच्छति, फलगं, संथारओ सेज्जा-उवस्सओ, संथारओ-कढिणादी, जहन्नेण चउग्गुणं खेत्तंवियार-विहार-वसही-आहारे।' विचारभूमि- कायिकाभूमि -मलमूत्रोत्सर्गभूमि नहीं है। विहारभूमि- स्वाध्यायभूमि नहीं है। पीढा-काष्ठनिर्मित चौकी या बाजोट, वर्षा ऋतु में बैठने की जगह में वनस्पति, लीलणफूलण उग आती है अतः इन पर बैठे। फलगं - पट्टा, पाटिया, तख्त, (संस्तारक), सेजाउपाश्रय, संथारओ - कढिणक आदि तृण, घास आदि। साधु को नीहार , स्वाध्याय, आवासस्थान एवं आहार के लिए कम से कम चार गुना क्षेत्र अपेक्षित है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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