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________________ द्वितीय अध्यापकल तृतीय उद्देश्यका सूत्र ४४४ १५१ वा डंडए वा लछिया का भिसिया वा मालिया वा चेले वाचिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वाचामाच्छेदणए वा दुबाद्धे दुशिविरखाले अणिकंपोचलाचले,भिक्खू य रातो वा वियाले वा शिक्खाममायो वापत्रिससामो वा वायलेजावा पकडेजावा, से तत्था पयलमाणे वा पवडमाणे बा हत्थं वा पायं ला जाब दियज्ञातं कालूसेज वा पाणाणि वा ४ अभिहणेज वा जाव व्रवसेवेज बा| ETAIT कि FFESSIFFERE : । अह भिक्खूण पुलोवादिद्वारा जंतहासमा उवास्साएं पुराहत्येण पच्छापादेण ततो संजयामेकणिकनमेज का पविलेज वा TFEETrrotri - Totri.. . Free Fesो. वह साधु या साध्वीविदिऐसे उपाय को जामे, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंद रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में (कदाचित् किसी कारणवश साधु को ठहरना पड़े तो) वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर निकलता हुआ या बाहर से भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोले ले, फिर र सें संयम (यतना) पूर्वक विकलेल्या प्रवेश किक्षवली भगवान् कहते हैं । (अन्यथा) यह कामबन्धका कारण हा क्योंकि वहाँ पर शाक्य आदि श्रमणो कथा ब्राह्मणों के जो छत्र पात्र, दंडे, साठी ऋषि-असारषिक) नासिकार एक प्रकार की लम्बी लाठी या घटिका) वस्त्र, चिलिमिली (यवनिका, पर्दा या मच्छरदानी) मृगचर्म, चर्मकोशा रचमड़े की थैली) या चर्म-छैदमक र (चमड़े का पटाने हैं, बाच्छी तरह बंधे हुए नहीं असामाव्यासारखे हुए हैं। अस्थिर. हिलने वाले) हैं, कुछ अधिक चंचल हैं (उनकी हानि होने का डर है) । रात्रि में या विकाल में अन्दर से बाहर या बाहर से अन्दर (अयतना से ) निकलता-घुसता हुआ साधु यदि फिसल पड़े या गिर पड़े (तो उनके उक्त उपकरण टूट जाएँगे) अथवा उस साधु के फिसलने या गिर पड़ने से उसके हाथ, पैर, सिर या अन्य इन्द्रियों (अंगोपांगों) के चोट ला सकती है या वे टूट सकते हैं, अथवा प्राणी, भूत, जीव और सच्चों को आघात लगेमा, वे दब जाएँमे यावत् के पापा रहित हो जाएंगे। इसलिए तीर्थंकर आदि आप्तपुरुषों ने पहले से यह प्रतिज्ञा बताई है, यह हेतु, कारण और उपदेश दिया है कि इस प्रकार के संकड़े छोटे और अन्धकारयुक्त) उपाश्रय में रात को यो विकाल में पहले हाथ सेटटोल कर फिर पर रखना चाहिए तथा यतापूर्वक भीतर से बाहर या बाहर से JimmuTuी मोमो TRIPE सोही की पाणEETों का हाका मा ... - विवेचन उपाश्रय निवास के समय विवेक और सावधानी- इस सूत्र में निर्दोष उपाश्रय मिलने पर भी तीन-बातों की ओर साधु का ध्यान खींचा गया है -(१) छोटे संकीर्ण, १. चर्मच्छेदनक – इस प्रकार का चर्म डोरा, जो दो वस्त्र खण्ड को जोड़ने के काम में आता था। Milो चम्मपरिच्छेयणगणावधं तदा विच्छिन्नसंधानार्थ अथवा द्विखण्ड-संधानहो घियते व्यवहारसूत्र उ० ८ वृत्ति (अभिः भाग ३, ६०११ ---- मग " PSISE ST सकार भीतर गमनागमन करना चाहिए।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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