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________________ १४६ ०४४ द्वतीय भूमिगृह, तलघर पाहुडे उपहार रूप में प्राप्त, भेंट दिये हुये गृह, वट्टति " उपयोग में लात हैं । वहवे समणजाते— अनेक प्रकार के श्रमणी पंचविध श्रमणों की, एवं समणजातसिर्फ एक प्रकार के निर्ग्रन्थ श्रमणवर्ग को, उवागच्छति आकर रहते हैं, ठहरते हैं। छावती का तात्पर्य है संयम साधु के लिए गृहस्थ मकान पर छप्पर छाती काय क हैं, या मकान पर छत डालती है कि संथारदुवारपिहणतो "" का तात्पर्य है । साधु के लिए ऊबड़-खाबड़ संस्तारक भूमि सोने की जगह को समतल करवाता है तथा द्वारको बन्द करने या ढकने के लिए कप आदि बनवाता है, या द्वार बन्द करवाता हैं। लोके ER IS "दुपक्ख ते कम्म सेवेति वृत्तिकार ने इस पंक्ति की व्याख्या इस प्रकार की हैं RIPE 11 " द्रव्य से वे साधुवेषी हैं, किन्तु साधु जीवन में औधाकम दोष युक्त उपाश्रय (वसति)' के सेवन के कारण भाव से गृहस्थ हैं। एक और राम और एक और द्वेष है, एक और ईयापथ ता दूसरी ओर साम्परायिक हैं, इस प्रकार द्रव्य से साधु के और भाव से गृहस्थ के कमी का S IS THE P15 BEST FIP सेवन करने के कारण वे 'द्विपक्षकर्म' का सेवन करते, साथ जीवन के लिए कल्पनीय, TIOT एगपक्ख ते कम्मे सर्वति' "वे साधु एकपक्षीय यानी साधु-उचित, उपयुक्त कर्म (कायोत्सर्ग, स्वाध्याय, शयनासनादि क्रियाएँ करते हैं। उस भिक्षु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं । पाण ४४२. एवं यह ( भिक्षुभाव की) समग्रता है बीओ उद्देसओ समतो क्षण कलिए (ज्ञानादि आचारयुक्त REILS BENISTI ELS तइओं उद्देसओं ATFT RATES ATTRS IST तृतीय उद्देशक उपाश्रय - छलना-विवेक ४४३. से य णो सुलभे 'फासूए उठे अहेसाणजे, णो य खलु सुद्ध इमेहि पाहुडेर्हि, छावणतो लेवणता स संथार-दुवार पिहाणतो पिंडवातेसणाओ। से य IFF PS 15TES TOETS DIE तंजा ११. से यणो सुलभे० आदि पंक्तियों का या चूर्णिकार के शब्दों में संबंधो अफासुगाणं विवेगो, फासुगाणं ग्रहणं वसहीणं । सेय को सुलभे फार वस्सए । आहारो ...सु सो हिज्जति, वसही दुकानं उछं अण्णातं अण्णातेण, कतरे उंछे! अहेसणिजे जहा एसणिजे । सो पुच्छति उज्जुगं साहु किमत्थ सांहुणी ण अच्छति? भणति पंडिस्सतो णत्थि अप्पणी " -
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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