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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
समारंभ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा जाव' आसेविते वा २ णो ठाणं वा ३ चेतेजा। एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं बहवे साहम्मिणीओ।
४१४ [१] से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा बहवे समण-माहणअतिहि किवण-वणीमए पगणिय २ समद्दिस्स तं चेव भाणियव्वं।
[२] से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेजा-बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुहिस्स पाणाई ४ जाव' चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे५ जाव अणोसेविते णो ठाणं वा चेतेजा।
अहं पुणेवं जाणेजा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविते। पडिलेहित्ता पमजित्ता ततो संजयामेव ठाणे वा ३ चेतेजा।
४१३. यदि साधु ऐसा उपाश्रय जाने, जो कि (भावुक गृहस्थ द्वारा) इसी प्रतिज्ञा से अर्थात् किसी एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ (उपमर्दन) करके बनाया गया है, उसी के उद्देश्य से खरीदा गया है, उधार लिया गया है, निर्बल से छीना गया है. उसके स्वामी की अनुमति के बिना लिया गया है, या साधु के समक्ष बनाया गया है, तो ऐसा उपाश्रय; चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत, उसके मालिक द्वारा अधिकृत हो या अनधिकृत, उसके स्वामी द्वारा परिभक्त हो या अपरिभक्त, अथवा उनके स्वामी द्वारा आसेवित हो या अनासेवित, उसमें कायोत्सर्ग, शय्या-संस्तारक या स्वाध्याय न करे।
जैसे एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से बनाए गए विशेषणों से युक्त उपाश्रय में कायोत्सर्गादि का निषेध किया गया है, वैसे ही बहुत-से साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी, बहुत-सी साधर्मिणी साध्वियों के उद्देश्य से बनाए हुए आदि विशेषणों से युक्त उपाश्रय में कायोत्सर्गादि का निषेध समझना चाहिए।
४१४. [१] वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो (आवास स्थान) बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों दरिद्रों एवं भिखारियों को गिन-गिन कर उनके उद्देश्य से प्राणी आदि का समारम्भ करके बनाया गया है, खरीदा आदि गया है, वह अपुरुषान्तरकृत आदि हो, १. यहाँ जाव शब्द से अपुरिसंतरकडे से आसेविते तक का पाठ सू० ३३१ के अनुसार समझें। २. आसेविते वा के बाद '२' का चिह्न अणासेविते वा पाठ का सूचक है, सूत्र ३३१ के अनुसार। ३. पाणाई के आगे '४' का अंक 'पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई' इन चारों पदों का सूचक है। ४. 'जाव' शब्द से 'समारंभ' से लेकर चेतेति तक का सारा पाठ सू० ३३१ के अनुसार समझें। ५. यहाँ जाव शब्द से अपुरिसंतरकडे से लेकर 'अणासेविते' तक पाठ सू० ३३१ के अनुसार समझें। ६. 'ठाणं वा' के आगे तीन का अंक 'सेजं वा निसीहियं वा' का सूचक है। ७. यहां जाव शब्द से पुरिसंतरकडे से आसेविते तक का समग्र पाठ सू० ३३२ के अनुसार समझें।