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________________ (११६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध बीयं अज्झयणं 'सेज्जा' पढमो उद्देसओ शय्यैषणाः द्वितीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक उपाश्रय-एषणा [ प्रथम विवेक] ४१२. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वाणगरं वा जाव' रायहाणिं वा से जं पुण उवस्सयं जाणेजा सअंडं सपाणं जाव २ संताणयं, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेजं वा णिसीहियं वा चेतेजा। से भिक्खूवा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेजा अप्पंडं जावसंताणगं, तहप्पगारे उवस्सए पिडलेहित्ता पमजित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा ३ चेतेजा। ४१२. साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत् राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान (कायोत्सर्ग), शय्या (संस्तारक) और निषीधिका (स्वाध्याय) न करे। ___ वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों यावत् मकड़ी के जाले आदि से रहित जाने; वैसे उपाश्रय का यतनापूर्वक प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके उसमें कायोत्सर्ग, संस्तारक एवं स्वाध्याय करे। विवेचन- उपाश्रय-निर्वाचन में प्रथम विवेक - प्रस्तुत सूत्र में उपाश्रय की एषणा विधि बतलाई गई है। 'उपाश्रय' शब्द यहाँ साधु के निमित्त सुरक्षित रखे हुए स्थान का नाम नहीं है, अपितु गृहस्थ द्वारा अपने उपयोग के लिए बनाये हुए स्थान-विशेष का नाम है। प्राचीन काल में साधु जिस स्थान को भलीभाँति देखभाल कर तथा निर्दोष और जीव-जन्तु-रहित स्थान जानकर चुन लेता था, गृहस्थ द्वारा उसमें ठहरने की अनुमति दे देने पर ठहर जाता था, तब वह अपने समझने या लोगों को समझाने भर के लिए उसे 'उपाश्रय' संज्ञा दे देता था, किन्तु जब साधु वहाँ से अन्यत्र विहार कर जाता था. उसका उपाश्रय नाम मिट जाता था। इस प्रकार उपाश्रय कोई नियत आवास स्थान १. यहाँ जाव शब्द से 'णगरं वा' से लेकर रायहाणिं तक समग्र पाठ सू० ३३८ के अनुसार समझें। २. यहाँ जाव शब्द से सपाणं से लेकर संताणयं तक समग्र पाठ सू० ३२४ के अनुसार समझें। ३. यहाँ ठाणं वा के बाद '३' का चिह्न सेज वा णिसीहियं वा पाठ का सूचक है।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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