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________________ द्वितीय अध्ययन : प्राथमिक की तथा पिण्डग्रहण के समय गुण-दोष - विवेक की तरह शय्याग्रहण के समय भी शय्यागुण-दोष - विवेक का प्रतिपादन किया गया है । १ - O १. २. ११५ शय्यैषणा अध्ययन के तीन उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में वसति के उद्गमादि दोषों तथा गृहस्थादि संसक्त वसति से होने वाली हानियों का चिन्तन है । द्वितीय उद्देशक में वसति सम्बन्धी विभिन्न दोषों की सम्भावना एवं उससे सम्बन्धित विवेक एवं त्याग का प्रतिपादन है । तृतीय उद्देशक में संयमी साधु के साथ वसति में होने वाली छलनाओं से सावधान रहने तथा सम-विषम वसति में समभाव रखने का विधान है। २ प्रस्तुत अध्ययन सूत्र संख्या ४१२ से प्रारम्भ होकर ४६३ पर समाप्त होता है । (क) आचारांग नियुक्ति गा० ३०२ (ख) टीका पत्र ३५९ के आधार पर (क) आचारांग निर्युक्ति गा० ३०३; ३०४ (ख) टीका पत्र ३५९ के आधार पर
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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