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________________ ११४ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन प्राथमिक 0 00 . 0 आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध के द्वितीय अध्ययन का नाम 'शय्यैषणा' है। शय्या का अर्थ यहाँ लोक-प्रसिद्ध बिछौना, गद्दा या 'सेज' ही नहीं है, अपितु सोने-बैठने, भोजनादि क्रिया करने तथा आवश्यक, स्वाध्याय, जप, तप आदि धार्मिक क्रिया करने के लिए आवास-स्थान, आसन, संस्तारक, सोने-बैठने के लिए पट्टा, चौकी आदि सभी पदार्थों का समावेश 'शय्या' में हो जाता है। संक्षेप में वसति-स्थान या आवास-स्थान (उपाश्रयादि) तथा तदन्तर्गत शयनीय उपकरणों को 'शय्या' कहा जा सकता है। प्रस्तुत अध्ययन में क्षेत्रशय्या, कालशय्या तथा द्विविध भावशय्या को छोड़कर केवल उस द्रव्यशय्या का विवेचन ही विवक्षित है, जो संयमी साधुओं के योग्य हो। २ द्रव्यशय्या तीन प्रकार की होती है – सचित्ता, अचित्ता, मिश्रा। २ एषणा का अर्थ है- अन्वेषणा,ग्रहण और परिभोग के विषय में संयम-नियम के अनकल चिन्तन- विवेक करना। ४ संयमी-साधु के लिए योग्य द्रव्यशय्या के अन्वेषण, ग्रहण और परिभोग के सम्बन्ध में कल्प्यअकल्प्य का चिन्तन/विवेक करना शय्यैषणा है, जिसमें शय्या-सम्बन्धी एषणा का निरूपण हो, उस अध्ययन का नाम शय्यैषणा-अध्ययन है। धर्म के लिए आधारभूत शरीर के परिपालनार्थ एवं निर्वहन के लिए जैसे पिण्ड (आहारपानी) की आवश्यकता होती है, वैसे ही शरीर को विश्राम देने, उसकी – सर्दी-गर्मी रोगादि से सुरक्षा करके धर्मक्रिया के योग्य रखने हेतु शय्या की आवश्यकता होती है। इसलिए 'पिण्डैषणा' में 'पिण्ड-विशुद्धि' की तरह – 'शय्यैषणा' में 'शय्या-विशुद्धि' १. (क) टीका पत्र ३५८ के आधार पर (ख) दशवै० जिन० चूर्णि पृ० २७९ २. आचारांग नियुक्ति गा० २९८,३०१ ३. आचारांग नियुक्ति गा० २९९ 'पाइअ-सद्द-महण्णवो' पृ० १९४ ५. टीका पत्र ३५८ के आधार पर
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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