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________________ ८ बिइओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा का निषेध १०. अट्टे लोए परिजुण्णे दुस्संबोधे अविजाणए । अस्सिं लोए पव्वहिए तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावेंति । १०. . जो मनुष्य आर्त, (विषय-वासना - कषाय आदि से पीड़ित) है, वह ज्ञान दर्शन से परिजीर्ण /हीन रहता है। ऐसे व्यक्ति को समझाना कठिन होता है, क्योंकि वह अज्ञानी जो है। अज्ञानी मनुष्य इस लोक में व्यथा - पीड़ा का अनुभव करता है। काम भोग व सुख के लिए आतुर - लालायित बने प्राणी स्थान-स्थान पर पृथ्वीकाय आदि प्राणियों को परिताप (कष्ट) देते रहते हैं । यह तू देख ! समझ ! " ११. संति पाणा पुढो सिआ । ११. पृथ्वीकायिक प्राणी पृथक् पृथक् शरीर में आश्रित रहते हैं अर्थात् वे प्रत्येकशरीरी होते हैं । १२. लज्जमाणा पुढो पास । 'अणगारा मो' त्ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति । आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध - १२. तू देख ! आत्म-साधक, लज्जमान है ( हिंसा से स्वयं का संकोच करता हुआ अर्थात् हिंसा करने में लज्जा का अनुभव करता हुआ संयममय जीवन जीता है ।) १. कुछ साधु वेषधारी 'हम गृहत्यागी हैं' ऐसा कथन करते हुए भी वे नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वीसम्बन्धी हिंसा - क्रिया में लगकर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं तथा पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं । २. परिज्ञातानि, ज्ञपरिज्ञया स्वरूपतोऽवगतानि प्रत्याख्यानपरिज्ञया च परिहृतानि कर्माणि येन स परिज्ञातकर्मा । -स्थानांगवृत्ति ३ । ३ (अभि. रा. भाग ५ पृ० ६२२) वस्तु, जिस जीवका के लिए मारक होती है, वह उसके लिए शस्त्र है। निर्युक्तिकार ने (गाथा ९५-९६) में पृथ्वीकाय के शस्त्र इस प्रकार गिनाये हैं १. कुदाली आदि भूमि खोदने के उपकरण ३. मृगभृंग ४. काठ - लकड़ी तृण आदि ७. स्वकाय शस्त्र; जैसे काली मिट्टी का शस्त्र पीली मिट्टी, आदि । - ८. परकाय अस्त्र; जैसे ९. तदुभय शस्त्र; जैसे - जल आदि, मिट्टी मिला जल, २. हल आदि भूमि विदारण के उपकरण ' ५. अग्निकाय ६. उच्चार- प्रस्रवण ( मल-मूत्र ) १०. भावशस्त्र असंयम ।
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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