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________________ प्रथम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र १३-१४ १३. तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाईमरण-मोयणाए, दुक्खपडिघातहेउं से सयमेव पुढविसत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा पुढविसत्थं समारंभावेति, अण्णे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणति । तं से अहिआए, तं से अबोहीए । १३. इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने परिज्ञा/विवेक का उपदेश किया है। कोई व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा-सम्मान और पूजा के लिए, जन्म-मरण और मुक्ति के लिए, दुःख का प्रतीकार करने के लिए, स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है, तथा हिंसा करने वालों का अनुमोदन करता है। वह (हिंसावृत्ति) उसके अहित के लिए होती है। उसकी अबोधि अर्थात् ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि, और चारित्र-बोधि की अनुपलब्धि के लिए कारणभूत होती है। . १४. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवतो अणगारांण वा इहमेगेसिंणातं भवतिएस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु निरए। इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति । १४. वह साधक (संयमी) हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को अच्छी तरह समझता हुआ, आदानीय-संयमसाधना में तत्पर हो जाता है। कुछ मनुष्यों को भगवान् के या अनगार मुनियों के समीप धर्म सुनकर यह ज्ञात होता है कि - 'यह जीव-हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।' (फिर भी) जो मनुष्य सुख आदि के लिए जीवहिंसा में आसक्त होता है, वह नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वीसम्बन्धी हिंसा-क्रिया में संलग्न होकर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है और तब वह न केवल पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है, अपितु अन्य नानाप्रकार के जीवों की भी हिंसा करता है। विवेचन - चूर्णि में 'आदानीय' का अर्थ संयम तथा 'विनय किया है। इस सूत्र में आये 'ग्रन्थ' आदि शब्द एक विशेष पारम्परिक अर्थ रखते हैं। साधारणतः 'ग्रन्थ' शब्द पुस्तक विशेष का सूचक है। शब्दकोष में ग्रन्थ का अर्थ 'गांठ' (ग्रन्थि) भी किया गया है जो शरीरविज्ञान एवं मनोविज्ञान में अधिक प्रयुक्त होता है । जैनसूत्रों में आया हुआ 'ग्रन्थ' शब्द इनसे भिन्न अर्थ का द्योतक है। आगमों के व्याख्याकार आचार्य मलयगिरि के अनुसार - "जिसके द्वारा, जिससे तथा जिसमें बँधा जाता है वह ग्रन्थ है।"१ उत्तराध्ययन, आचारांग, स्थानांग, विशेषावश्यक भाष्य आदि में कषाय को ग्रन्थ या ग्रन्थि कहा है। आत्मा को बाँधने वाले कषाय या कर्म को भी ग्रन्थ कहा गया है। २ १. गंथिज्जइ तेण तओ तम्मि व तो तं मयं गंथो - विशेषा० १३८३ (अभि. राजेन्द्र ३१७३९) २. . अभि. राजेन्द्र भाग ३१७९३ में उद्धृत
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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