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________________ प्रथम अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ७-९ ७. इस सम्बन्ध में (कर्म - बन्धन कारणों के विषय में) भगवान् ने परिज्ञा १ विवेक का उपदेश किया है । ( अनेक मनुष्य इन आठ हेतुओं से कर्मसंमारभ - हिंसा करते हैं) १. अपने इस जीवन के लिए, २. प्रशंसा व यश के लिए, ३. सम्मान की प्राप्ति के लिए, ४. पूजा आदि पाने के लिए, ५. जन्म - सन्तान आदि के जन्म पर, अथवा स्वयं के जन्म निमित्त से, ६. मरण - मृत्यु सम्बन्धी कारणों व प्रसंगों पर, ७. मुक्ति के प्रेरणा या लालसा से, (अथवा जन्म-मरण से मुक्ति पाने की इच्छा से) ८. दुःख के प्रतीकार हेतु - रोग, आतंक, उपद्रव आदि मिटाने के लिए। ८. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति । ९. जस्सेते लोगंसि कम्मसमारंभा परिण्णया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति बेमि । ॥ पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ८. लोक में (उक्त हेतुओं से होने वाले) ये सब कर्मसमारंभ/हिंसा के हेतु जानने योग्य और त्यागने योग्य होते हैं। ९. लोक में ये जो कर्मसमारंभ / हिंसा के हेतु हैं, इन्हें जो जान लेता है (और त्याग देता है) वही परिज्ञातकर्मा मुनि होता है। - ऐसा मैं कहता हूँ । ॥ प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ एते भो कसिणा फासा से स्पर्श का अर्थ परीषह किया है। आचारांग में अनेक अर्थों में इसका प्रयोग हुआ है। जैसे-इन्द्रियसुख (सूत्र १६४) गाढ प्रहार आदि से उत्पन्न पीड़ा (सूत्र १७९ । गाथा १५ ) उपताप व दुःख विशेष (सूत्र २०६ ) अन्य सूत्रों में भी 'स्पर्श' शब्द प्रसंगानुसार नया अर्थ व्यक्त करता रहा है। जैसे परस्पर का संघट्टन (छूना) - बृहत्कल्प १ । ३ सम्पर्क - सम्बन्ध, सूत्रकृत १।५।१ स्पर्शना - आराधना - बृहत्कल्प १ । २ भगवती १५ । ७ स्पर्शन - अनुपालन करना गीता (२ । १४, ५ ।२१ ) में इन्द्रिय-सुख के अर्थ में स्पर्श शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है। बौद्ध ग्रन्थों में इन्द्रिय- सम्पर्क के अर्थ में 'फस्स' शब्द व्यवहृत हुआ है। (मज्झिमनिकाय सम्मादिट्ठि सुत्तं पृ० ७०) १. परिज्ञा के दो प्रकार हैं - (१) ज्ञ परिज्ञा - वस्तु का बोध करना । सावद्य प्रवृत्ति से कर्मबन्ध होता है यह जानना तथा (२) प्रत्याख्यान- परिज्ञा - बंधहेतु सावद्ययोगों का त्याग करना । - " तत्र ज्ञपरिज्ञया, सावद्यव्यापारेण बन्धो भवतीत्येवं भगवता परिज्ञा प्रवेदिता प्रत्याख्यानपरिज्ञया च सावद्ययोगा बन्धहेतवः प्रत्याख्येया इत्येवंरूपा चेति । " - आचारांग शीलांक टीका पत्रांक २३
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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