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अष्टम अध्ययन : अष्टम उद्देशक : सूत्र २२९
२६३ के रूप में बताए गए) हैं, धैर्यवान्, संयम का धनी (वसुमान्) एवं हेयोपादेय-परिज्ञाता (मतिमान्) भिक्षु उनको प्राप्त करके (उनके सम्बन्ध में) सब कुछ जानकर (उनमें से) एक अद्वितीय (समाधिमरण को अपनाए)।
विवेचन - अनशन का आन्तरिक विधि-विधान - पूर्व उद्देशकों में जिन तीन समाधिमरण रूप अनशनों का निरूपण किया गया है, उन्हीं के विशेष आन्तरिक विधि-विधानों के सम्बन्ध में आठवें उद्देशक में क्रमशः वर्णन किया है।
'अणुपुव्वेण विमोहाइं' इस पंक्ति के द्वारा शास्त्रकार ने दो प्रकार के अनशनों की ओर इंगित कर दिया है, वे हैं - (१) सविचार और (२) अविचार । २ इन्हें ही दूसरे शब्दों में क्रमप्राप्त और आकस्मिक अथवा सपरिक्रम - (सपराक्रम) और अपरिक्रम (अपराक्रम) अथवा २ अव्याघात और सव्याघात कहा गया है।
सविचारं अनशन-तब किया जाता है, जब तक जंघाबल क्षीण न हो (अर्थात्-शरीर समर्थ हो) जब कालपरिपाक से आयु क्रमशः क्षीण होती जा रही हो, जिसमें विधिवत् क्रमशः द्वादश वर्षीय संलेखना की जाती हो। इसका क्रम इस प्रकार है - ५ प्रव्रज्याग्रहण, गुरु के समीप रहकर सूत्रार्थ-ग्रहण शिक्षा, उसके साथ ही आसेवनाशिक्षा द्वारा सक्रिय अनुभव, दूसरों को सूत्रार्थ का अध्यापन, फिर गुरु से अनुज्ञा प्राप्त करके तीन अनशनों में से किसी एक का चुनाव और (१) आहार, (२) उपधि, (३) शरीर-इन तीनों से विमुक्त होने का प्रतिदिन अभ्यास करना, अन्त में सबसे क्षमा याचना, आलोचना-प्रायश्चित द्वारा शुद्धीकरण करके समाधिपूर्वक शरीर-विसर्जन करना । इसी को आनुपूर्वी अनशन (अर्थात् - अनशन की अनुक्रमिक साधना) भी कहते हैं। इसमें दुर्भिक्ष, बुढ़ापा, दुःसाध्य मृत्युदायक रोग और शरीर बल की क्रमशः क्षीणता आदि कारण भी होते हैं। ६
___ आकस्मिक अनशन -सहसा उपसर्ग उपस्थित होने पर या अकस्मात जंघाबल आदि क्षीण हो जाने पर , शरीर शून्य या बेहोश हो जाने पर, हठात् बीमारी का प्राणान्तक आक्रमण हो जाने पर तथा स्वयं में उठने-बैठने आदि की बिल्कुल शक्ति न होने पर किया जाता है।
पूर्व उद्देशकों में आकस्मिक अनशनों का वर्णन था, इस उद्देशक में क्रमप्राप्त अनशन का वर्णन है। इसे आनुपूर्वी अनशन, अव्याघात, सपराक्रम और सविचार अनशन भी कहा जाता है।
आचा० शीला० टीका पत्रांक २८९ विचरणं नानागमनं विचार :विचारेण सह वर्तते इति सविचारम् - विचरण - नाना प्रकार के संचरण से युक्त जो अनशन किया जाता है, वह सविचार अनशन होता है, यह अनागाढ़, सहसा अनुपस्थित और चिरकालभावी मरण भी कहलाता है। इसके विपरीत अनशन (समाधिमरण) अविचार कहलाता है।
- भगवती आराधना वि०६४/१९२/६ जासा अणसणा मरणे, विहा सा वियाहिया। सवियारमवीयारा, कायचेटुं पई भवे ॥१२॥ अहवा सपडिकम्मा अपरिक्कम्मा य आहिया। नीहा रि मनीहारी आहारच्छेओ दोसु वि ॥१३ ॥ - अभिधान रा० कोष भा० १ पृ० ३०३-३०४ सागारंधर्मामृत ८/९-१०
५. आचा० शीला० टीका पत्रांक २८९ उपसर्गे, दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकारे ॥ धर्माय तनुविमोचनमाहु संलेखनामार्याः ॥ - रत्नकरण्डक श्रावकाचार १२२ अभिधान राजेन्द्र कोष भा० १ पृ० ३०३
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