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________________ २६४ आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध समाधिमरण के लिए चार बातें आवश्यक - (१) संयम, (२) ज्ञान, (३) धैर्य और (४) निर्मोहभाव; इन चारों का संकेत इस गाथा में दिया गया है। 'विमोहाइं"समासज्ज"सव्वं णच्चा अणेलिसं' - इस गाथा में वैहानसमरण सहित चार मरणों को विमोह कहा गया है। क्योंकि इन सब में शरीरादि के प्रति मोह सर्वथा छोड़ना होता है। इन्हीं को 'विमोक्ष' कहा गया है। इस गाथा का तात्पर्य यह है कि इन सब विमोहों को, बाह्य-आभ्यन्तर, क्रमप्राप्त-आकस्मिक, सविचार-अविचार आदि को सभी प्रकार से भलीभांति जानकर, इनके विधि-विधानों, कृत्यों-अकृत्यों को समझकर अपनी धृति, संहनन, बलाबल आदि का नाप-तौल करके संयम के धनी, वीर और हेयोपदेय विवेक-बुद्धि से ओत-प्रोत भिक्षु को अपने लिए इनमें से यथायोग्य एक ही समाधिमरण का चुनाव करके समाधि पूर्वक उसका अनुपालन करना चाहिए। भक्तप्रत्याख्यान अनशन तथा संलेखना विधि २३०. दुविहं २ पि विदित्ता णं बुद्धा धम्मस्स पारगा। अणुपुव्वीए संखाए आरंभाए तिउति ' ॥१७॥ २३१. कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तितिक्खए । अह भिक्खू गिलाएजा आहारस्सेव अंतियं ॥१८॥ २३२. जीवियं णाभिकंखेज्जा मरणं णो वि पत्थए.। दुहतो वि ण सजेजा जीविते मरणे तहा ॥१९॥ . २३३. मज्झत्थो णिजरापेही समाहिमणुपालए । अंतो बहिं वियोसज अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥२०॥ २३४. जं किंचुवक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पणो । तस्सेव अंतरद्धाए खिप्पं सिक्खेज पंडिते ॥२१॥ २३५. गामे अदुवा रणे थंडिलं पडिलेहिया । अप्पपाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी ॥२२॥ २३६. अणाहारो तुंवट्टेज्जा पुट्ठो तत्थ हियासए । __णातिवेलं उवचरे माणुस्सेहिं वि पुट्ठवं ॥२३॥ २३७. संसप्पगा य जे पाणा जे य उड्डमहेचरा । भुजंते मंससोणियं ण छणे ण पमजए ॥२४॥ आचा० शीला० टीका पत्रांक २८९ आचा० शीला० टीका पत्रांक २८९ इसके बदले चूर्णि में पाठान्तर मिलता है - दुविहं पि विगिंचित्ता बुद्धा' - प्रबुद्ध साधक दोनों प्रकार से विशिष्ट रूप से विश्लेषण करके...। इसके बदले चूर्णिकार मान्य पाठान्तर है - 'कम्मुणा य तिउदृति' अन्य भी पाठान्तर है - कम्मुणाओ तिउट्टति, अर्थात् - कर्म __ से अलग हो जाता है - सम्बन्ध टूट जाता है। ५. 'तितिक्खए' के बदले चूर्णि में 'तिउदृति' पाठ है। अर्थ होता है - कर्मों को तोड़ता है। इसके बदले चूर्णि में पाठान्तर है - 'आहारस्सेव कारणा'। अर्थ होता है - आहार के कारण ही भिक्षु ग्लान हो जाए तो। |
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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