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________________ २६२ आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध दोनों के प्रतीकार से - सेवा-शुश्रूषा से रहित मरण का नाम ही प्रायोपगमन-मरण है। पादपोपगमन मरण का लक्षण है - जिस प्रकार पादप-वृक्ष सम या विषय अवस्था में निश्चेष्ट पड़ा रहता है, उसी प्रकार सम या विषम, जिस स्थिति में स्थित हो पड़ जाता है, अपना अंग रखता है, उसी स्थिति में आजीवन निश्चल-निश्चेष्ट पड़ा रहता है। पादपोपगमन अनशन का साधक दूसरे से सेवा नहीं लेता और न ही दूसरों की सेवा करता है। दोनों का लक्षण मिलता-जुलता है। २ इसकी और सब विधि तो इंगित-मरण की तरह है, लेकिन इंगित-मरण में पूर्व नियत क्षेत्र में हाथ-पैर आदि अवयवों का संचालन किया जाता है, जबकि पादपोपगमन में एक ही नियत स्थान पर भिक्षु निश्चेष्ट पड़ा रहता है। पादपोपगमन में विशेषतया तीन बातों का प्रत्याख्यान (त्याग) अनिवार्य होता है - (१) शरीर, (२) शरीरगत योग-आकुञ्चन, प्रसारण, उन्मेष, आदि काय व्यापार और (३) ईर्या - वाणीगत सूक्ष्म तथा अप्रशस्त हलन-चलन।' इसका माहात्म्य भी इंगितमरण की तरह बताया गया है। शरीर-विमोक्ष में प्रायोपगमन प्रबल सहायक है। ॥ सातवां उद्देशक समाप्त ॥ अट्ठमो उद्देसओ अष्टम उद्देशक आनुपूर्वी अनशन २२९. अणुपुव्वेण विमोहाइं जाइं५ धीरा समासज । वसुमंतो मतिमंतो सव्वं णच्चा अणेलिसं ॥१६॥ २२९. जो (भक्तप्रत्याख्यान, इंगितमरण एवं प्रायोपगमन, ये तीन) विमोह या विमोक्ष क्रमशः (समाधिमरण १. प्रायोपगमनमरण की विशेष व्याख्या के लिए देखिए - जैनेन्द्रसिद्धान्तकोष भाग ४, पृष्ठ ३९०-३९१ भगवती सूत्र श० २५, उ०७ की टीका पादपोपगमन की विशेष व्याख्या के लिए देखिये - अभिधानराजेन्द्र कोष भा०५, पृष्ठ ८१९ आचा० शीला० टीका पत्रांक २८९ इसके बदले पाठान्तर है - जाणि वीरा समासज-जिन्हें वीर प्राप्त करके...... 'वसुमंतो' के बदले चूर्णिकार ने 'वुसीमंतो' पाठ मानकर अर्थ किया है - संजमो वुसी, सो जत्थ अत्थि, जत्थ वा विज्जति सो वुसिमां...वुसिमं च वुसिमंतो। अर्थात् - वुसी (वृषि) संयम को कहते हैं, जहाँ वृषि है या जिसमें वृषि संयम है, वह वृषिमान् कहलाता है, उसके बहुवचन का रूप है - वुसीमंतो। in x j w
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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