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________________ २५६ आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध ___ 'अणातीते' - के अर्थ में टीकाकार व चूर्णिकार के अर्थ कुछ भिन्न हैं। चूर्णि में दो अर्थ इस प्रकार किये हैं (१) जीवादि पदार्थों, ज्ञानादि पंच आचारों का ग्रहण कर लिया है, वह उनसे अतीत नहीं है, तथा (२) जिसने महाव्रत भारवहन का अतीत-अतिक्रमण नहीं किया है, वह अनातीत है अर्थात् महाव्रत का भार जैसा लिया था, वैसा ही निभाने वाला है। समाधिमरण का साधक ऐसा ही होता है। १ ' छिण्णकहकहे - इस शब्द के वृत्तिकार ने दो अर्थ किए हैं - (१) किसी भी प्रकार से होने वाली राग-द्वेषात्मक कथाएँ (बातें) जिसने सर्वथा बन्द कर दी है, अथवा (२) 'मैं कैसे इस इंगितमरण की प्रतिज्ञा को निभा पाऊँगा।' इस प्रकार की शंकाग्रस्त कथा ही जिसने समाप्त कर दी है। एक अर्थ यह भी सम्भव है - इंगितमरण साधक को देखकर लोगों की ओर से तरह-तरह की शंकाएँ उठायी जाएँ, ताने कसे जाएँ या कहकहे गूंजें, उपहास किया जाय, तो भी वह विचलित या व्याकुल नहीं होता। ऐसा साधक 'छिन्नकथंकथं होता है। 'आतीत?' - इस शब्द के विभिन्न नयों से वृत्तिकार ने चार अर्थ बताए हैं - (१) जिसने जीवादि पदार्थ सब प्रकार से ज्ञात कर लिए हैं, वह आतीतार्थ। (२) जिसने पदार्थों को आदत्त-गृहीत कर लिया है, वह आदत्तार्थ । (३) जो अनादि-अनन्त संसार में गमन से अतीत हो चुका है। (४) संसार को जिसने आदत्त-ग्रहण नहीं किया - अर्थात् जो अब निश्चय ही संसार-सागर का पारगामी हो चुका है। चूर्णिकार ने प्रथम अर्थ को स्वीकार किया है। __भेरवमणुचिण्णे या भेरवमणुविण्णे - दोनों ही पाठ मिलते हैं। भेरवमणुचिण्णे' पाठ मानने पर भैरव शब्द इंगितमरण का विशेषण बन जाता है, अर्थ हो जाता है - जो घोर अनुष्ठान है, कायरों द्वारा जिसका अध्यवसाय भी दुष्कर है, ऐसे भैरव इंगितमरण को अनुचीर्ण-आचरित कर दिखाने वाला। चूर्णिकार ने दूसरा पाठ मानकर अर्थ किया है - जो भयोत्पादक परीषहों और उपसर्गों से तथा डांस, मच्छर, सिंह, व्याघ्र आदि से एवं राक्षस, पिशाच आदि से उद्विग्न नहीं होता, वह भैरवों से अनुद्विग्न है।' ॥ षष्ठ उद्देशक समाप्त ॥ 'अणातीते' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है - 'आतीतं णाम गहितं, अत्था जीवादि नाणादी वा पंच, ण अतीतो जहारोवियभारवाही।' - आचारांग चूर्णि मूल पाठ टिप्पणी पृष्ठ ८१ आचा० शीला० टीका पत्रांक २८६ आचा० शीला० टीका पत्रांक २८६ 'भेरवमणुचिण्णे' के स्थान पर चूर्णि में भेरवमणुविण्णे' पाठ मिलता है जिसका अर्थ इस प्रकार किया गया है - भयं करोतीति भेरवं भेरवेहि परीसहोवसग्गेहि अणुविजमाणो अणुविण्णो,दंसमसग-सीह-वग्यातिएहि यरक्ख-पिसायादिहि __ - आचारांग चूर्णि मूलपाठ टिप्पण, पृष्ठ ८१
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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