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________________ २३८ आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध शंका पैदा हो गयी है। अतः मुझे इस शंका का निवारण करना चाहिए। इस अभिप्राय से साधु उसका समाधान करता है - "सीतफासं णो खलु...अहियोसेत्तए" मैं सर्दी नहीं सहन कर पा रहा हूँ। ____ अपनी कल्पमर्यादा का ज्ञाता साधु अग्निकाय-सेवन को अनाचरणीय बताता है। इस पर कोई भावुक भक्त अग्नि जलाकर साधु के शरीर को उससे तपाने लगे तो साधु उससे सद्भावपूर्वक स्पष्टतया अग्नि के सेवन का निषेध कर दे। ॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ चउत्थो उद्देसओ चतुर्थ उद्देशक उपधि-विमोक्ष २१३. जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं तस्स णं णो एवं भवति - चउत्थं वत्थं जाइस्सामि। २१४. से अहेसणिजाई वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा', णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोतरत्ताइं वत्थाइंधारेजा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु, ओमचेलिए । एतं खुवत्थधारिस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेजा 'उवातिक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे', अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिट्ठवेजा, अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिद्ववेत्ता अदुआ संतरुत्तरे, अदुवा ओमचेले, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागते भवति। जहेतं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए सम्मत्तभेव ५ समभिजाणिया । २१३. जो भिक्षु तीन वस्त्र और चौथा (एक) पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है। उसके मन में ऐसा अध्यवसाय नहीं होता कि "मैं चौथे वस्त्र की याचना करूँगा।" २१४. वह यथा-एषणीय (अपनी समाचारी-मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय) वस्त्रों की याचना करे और आचा० शीला० टीका पत्र २७५-२७३ "वत्थं धारिस्सामि' पाठान्तर चूर्णि में है। अर्थ है - वस्त्र धारण करूँगा। इसके बदले अहापग्गहियाई पाठ है, अर्थ है - यथाप्रगृहीत - जैसा गहस्थ से लिया है। इसका अर्थ चूर्णि में इस प्रकार है - "णो धोएज रएज त्ति कसायधातुकद्दमादीहिं, धोतरत्तं णाम जं धोवितुं पुणोरयति।" - प्रासुक जल से भी न धोए, न काषायिक धातु, कर्दम आदि के रंग से रंगे, न ही धोए हुए वस्त्र को पुनः रंगे। किसी प्रति में 'समत्त' शब्द है। उसका अर्थ होता है - समत्व। किसी प्रति में 'समभिजाणियां' के बदले 'समभिजाणिज्जा' शब्द मिलता है, उसका अर्थ है - सम्यक् रूप से जाने और आचरण करे। | 3
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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